पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं --- "चिंता मनुष्य को वैसे ही खा जाती है , जैसे कपड़ों को कीड़ा l बहुत चिंता करने वाले व्यक्ति अपने जीवन में चिंता करने के सिवा और कुछ सार्थक नहीं कर पाते और चिंता से अपनी चिता की ओर बढ़ते हैं l " चिंता की घुन क्या होती है , यह स्पष्ट करने वाला एक प्रसंग है ---- दो वैज्ञानिक --एक युवा और एक वृद्ध आपस में बात कर रहे थे l वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा ---" चाहे विज्ञानं कितनी भी प्रगति क्यों न कर ले , लेकिन वह अभी तक ऐसा कोई उपकरण नहीं ढूंढ पाया , जिससे चिंता पर लगाम कसी जा सके l " युवा वैज्ञानिक इस बात से सहमत नहीं हुआ और बोला --चिंता तो बहुत साधारण बात है , इसके लिए उपकरण ढूँढने में क्यों समय नष्ट किया जाए l तब वृद्ध वैज्ञानिक उसे अपनी बात समझाने के लिए घने जंगलों की ओर ले गए l वहां एक विशालकाय वृक्ष के सामने खड़े हो गए और उस युवा वैज्ञानिक से कहा ---- " इस वृक्ष उम्र लगभग चार सौ वर्ष है , इस वृक्ष पर चौदह बार बिजलियाँ गिरी l चार सौ वर्षों से अनेक तूफानों का इसने सामना किया लेकिन फिर भी यह धराशायी नहीं हुआ , मजबूती से खड़ा रहा l लेकिन अब देखो इसकी जड़ों में दीमक लग गई l दीमक ने इसकी छाल को कुतर -कुतरकर तबाह कर दिया और अब यह वृक्ष गिरने की कगार पर है l इसी तरह चिंता की दीमक भी एक सुखी , समृद्ध और ताकतवर व्यक्ति को चट कर जाती है l " आचार्य श्री का कहना है ---- 'चिंता करने के बजाय स्वयं को सदा सार्थक कार्यों में संलग्न रखें l जीवन के प्रति सकारात्मक द्रष्टिकोण रखना और मन को अच्छे विचारों से ओत -प्रोत रखना --ऐसे उपाय हैं ,जिनसे मन को चिंतामुक्त किया जा सकता है l '
No comments:
Post a Comment