विश्व विजय के स्वप्न द्रष्टा हिटलर को हालैंड आँखों में तिनके की भांति खटक रहा था l आगे बढ़ने के लिए हालैंड पर विजय प्राप्त करना आवश्यक था l आदेश मिलते ही जर्मनी की विशाल सेना हालैंड पर चढ़ दौड़ी l उन दिनों यह देश गरीबी के भयंकर दौर से गुजर रहा था l हालैंड की जमीन की सतह समुद्र से भी नीची है इसलिए यहाँ के नागरिकों को बड़ी दीवार बनाकर अपनी सुरक्षा करनी पड़ती है | देश की आधी शक्ति इसी में खप जाती है l उनके पास न सेना थी न ही लड़ने के लिए शस्त्र l
जर्मन सैनिकों ने सोचा कि हालैंड को तो मिनटों में जीता जा सकता है l जर्मन सेना का हमला हुआ तो हालैंड के विचारशीलों ने मीटिंग बुलाई और सर्वसम्मति से यह तय हुआ कि गुलाम हो कर जीने की अपेक्षा शान से मरना अधिक श्रेयस्कर है l हम किसी भी कीमत पर गुलामी की जंजीरें नहीं पहनेंगे l गाँव - गाँव में नगाड़े आदि के माध्यम से मुनादी पिटवा दी गई कि जब तक हालैंड का एक भी बच्चा जीवित है , हम गुलामी स्वीकार नहीं करेंगे l
हालैंड के पास न शस्त्र न सेना , फिर मुकाबला कैसे हो ? यह निश्चय किया गया कि जिस भी गाँव पर जर्मन सेना हमला करे , उस गाँव की दीवाल तोड़ दी जाये l इस प्रकार समुद्र के पानी से गाँव तो डूबेगा ही , जर्मन सेना भी डूबेगी l
जिस गाँव पर जर्मन सेना ने हमला किया , उसे हालैंड के युवकों ने दीवाल तोड़कर डुबो दिया और गाँव के बच्चे - बच्चे ने जल - समाधि ले ली और साथ ही जर्मन फौज की टुकड़ी भी समुद्र में डूब गई l दूसरे और तीसरे नगर पर हमला हुआ , वहां भी हालैंड के नागरिकों ने ऐसी ही नीति अपनाई तीन गाँव अथाह जलराशि में समा गए , साथ में जर्मनी की फौजें भी डूब गईं l
हिटलर को ऐसी आशा भी न थी कि ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा l जर्मन सेना का मनोबल टूट गया l देशभक्ति उनमे भी थी पर हालैंड वासियों की कुर्बानी के समक्ष फीकी पड़ गई l हिटलर ने सेना को वापस लौट जाने का आदेश दिया और कहा कि हालैंड पर विजय प्राप्त करना सम्भव नहीं है l उसने अपनी डायरी में लिखा ---- " आज मुझे पहली बार पता चला कि संगीनों , बंदूकों और बमों से अधिक ताकतवर होती है ---- मन एवं आत्मा की शक्ति l जिस देश के नागरिक आत्म - स्वाभिमान की रक्षा के लिए मरने को तैयार हैं, उन्हें कोई गुलाम नहीं बना सकता l " बची हुई जर्मन सेना पराजय स्वीकार कर के वापस लौट गई l
जर्मन सैनिकों ने सोचा कि हालैंड को तो मिनटों में जीता जा सकता है l जर्मन सेना का हमला हुआ तो हालैंड के विचारशीलों ने मीटिंग बुलाई और सर्वसम्मति से यह तय हुआ कि गुलाम हो कर जीने की अपेक्षा शान से मरना अधिक श्रेयस्कर है l हम किसी भी कीमत पर गुलामी की जंजीरें नहीं पहनेंगे l गाँव - गाँव में नगाड़े आदि के माध्यम से मुनादी पिटवा दी गई कि जब तक हालैंड का एक भी बच्चा जीवित है , हम गुलामी स्वीकार नहीं करेंगे l
हालैंड के पास न शस्त्र न सेना , फिर मुकाबला कैसे हो ? यह निश्चय किया गया कि जिस भी गाँव पर जर्मन सेना हमला करे , उस गाँव की दीवाल तोड़ दी जाये l इस प्रकार समुद्र के पानी से गाँव तो डूबेगा ही , जर्मन सेना भी डूबेगी l
जिस गाँव पर जर्मन सेना ने हमला किया , उसे हालैंड के युवकों ने दीवाल तोड़कर डुबो दिया और गाँव के बच्चे - बच्चे ने जल - समाधि ले ली और साथ ही जर्मन फौज की टुकड़ी भी समुद्र में डूब गई l दूसरे और तीसरे नगर पर हमला हुआ , वहां भी हालैंड के नागरिकों ने ऐसी ही नीति अपनाई तीन गाँव अथाह जलराशि में समा गए , साथ में जर्मनी की फौजें भी डूब गईं l
हिटलर को ऐसी आशा भी न थी कि ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा l जर्मन सेना का मनोबल टूट गया l देशभक्ति उनमे भी थी पर हालैंड वासियों की कुर्बानी के समक्ष फीकी पड़ गई l हिटलर ने सेना को वापस लौट जाने का आदेश दिया और कहा कि हालैंड पर विजय प्राप्त करना सम्भव नहीं है l उसने अपनी डायरी में लिखा ---- " आज मुझे पहली बार पता चला कि संगीनों , बंदूकों और बमों से अधिक ताकतवर होती है ---- मन एवं आत्मा की शक्ति l जिस देश के नागरिक आत्म - स्वाभिमान की रक्षा के लिए मरने को तैयार हैं, उन्हें कोई गुलाम नहीं बना सकता l " बची हुई जर्मन सेना पराजय स्वीकार कर के वापस लौट गई l
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