प्रसिद्ध विचारक हरिभाऊ उपाध्याय के एक मित्र थे जो गांधीजी के कटु आलोचक थे l उपाध्याय जी के उन मित्र को गांधीजी की अहिंसा बड़ी आपत्तिजनक लगती थी l उन्होंने कहा कि आप एक बार महात्मा जी से मेरी मुलाकात करा दें तो देश का भला होगा l क्योंकि मेरा मन महात्मा जी को खूब खरी - खोटी सुनाने का है ताकि वे अपनी अहिंसा की रीति - नीति बदलें और उनकी अहिंसा से देश को जो नुकसान हो रहा है , वह बंद हो जाये l
संयोग से एक दिन गांधीजी ट्रेन में कहीं जाने के लिए बैठे और सामना होने पर उपाध्यायजी को यह कहना पड़ा --- " बापू ! यह हमारे आर्य समाजी मित्र हैं , बड़े दबंग और आपके कटु आलोचक हैं l कई बार आपसे मिलने के लिए कह चुके हैं l " गांधीजी ने हँसते हुए कहा -- " हाँ --हाँ जरुर सुनूंगा l " वे महाशय डिब्बे के अन्दर पहुंचे और गांधीजी को खरी - खोटी कहने लगे l बापू उनकी बात सुनते हुए बोले ----कृपया बैठ जाएँ इससे आपको सुनाने में सुविधा होगी और मुझे सुनने में l
इतने में ट्रेन चल दी , उन महाशय को कुछ ख्याल न रहा , उनने आलोचना जारी रखी l उन्हें पता तब चला जब गाड़ी ने गति पकड़ ली , अब उपाध्यायजी के मित्र के चेहरे पर घबराहट आ गई गांधीजी ने उनकी घबराहट का कारण समझ लिया और कहा --" आप चिंता न करें l आपकी बहुत सी बातों से मेरा भला हो रहा है l " इतने में टिकट चेकर ने टिकट माँगा l तत्काल गांधीजी ने कहा ---- " ये मेरे साथ हैं , अभी अजमेर से सवार हुए हैं l जल्दी के कारण टिकट नहीं बन सका इसलिए इनका टिकट बना दीजिये l " टिकट बनाकर टी.टी, चला गया तो गांधीजी ने सहज भाव से आलोचक से कहा ---- आप अपनी बात जारी रखिये l
लेकिन अब आलोचक महोदय से कुछ कहते नहीं बन रहा था l वह सोच रहा था कि कैसा विचित्र व्यक्ति है यह जो अपने आलोचक के प्रति भी मैत्री भाव रखता है l उसे इतनी कटु आलोचना करने पर भी 'हाँ या अच्छा 'से अधिक कुछ सुनने को नहीं मिला l बापू ने उसके असमंजस को भांप लिया और कहा ---- " प्रत्येक में दोष भी रहते हैं और गुण भी l मेरी भी यही स्थिति है l पर वास्तविक मनुष्य वही है जो अपने दोषों को खोजकर उनके निवारण का सच्चे ह्रदय से प्रयत्न कर रहा हो l आपने दोषों को खोजने में मेरी मदद की अत: आपसे बड़ा मित्र और कौन होगा l "
संयोग से एक दिन गांधीजी ट्रेन में कहीं जाने के लिए बैठे और सामना होने पर उपाध्यायजी को यह कहना पड़ा --- " बापू ! यह हमारे आर्य समाजी मित्र हैं , बड़े दबंग और आपके कटु आलोचक हैं l कई बार आपसे मिलने के लिए कह चुके हैं l " गांधीजी ने हँसते हुए कहा -- " हाँ --हाँ जरुर सुनूंगा l " वे महाशय डिब्बे के अन्दर पहुंचे और गांधीजी को खरी - खोटी कहने लगे l बापू उनकी बात सुनते हुए बोले ----कृपया बैठ जाएँ इससे आपको सुनाने में सुविधा होगी और मुझे सुनने में l
इतने में ट्रेन चल दी , उन महाशय को कुछ ख्याल न रहा , उनने आलोचना जारी रखी l उन्हें पता तब चला जब गाड़ी ने गति पकड़ ली , अब उपाध्यायजी के मित्र के चेहरे पर घबराहट आ गई गांधीजी ने उनकी घबराहट का कारण समझ लिया और कहा --" आप चिंता न करें l आपकी बहुत सी बातों से मेरा भला हो रहा है l " इतने में टिकट चेकर ने टिकट माँगा l तत्काल गांधीजी ने कहा ---- " ये मेरे साथ हैं , अभी अजमेर से सवार हुए हैं l जल्दी के कारण टिकट नहीं बन सका इसलिए इनका टिकट बना दीजिये l " टिकट बनाकर टी.टी, चला गया तो गांधीजी ने सहज भाव से आलोचक से कहा ---- आप अपनी बात जारी रखिये l
लेकिन अब आलोचक महोदय से कुछ कहते नहीं बन रहा था l वह सोच रहा था कि कैसा विचित्र व्यक्ति है यह जो अपने आलोचक के प्रति भी मैत्री भाव रखता है l उसे इतनी कटु आलोचना करने पर भी 'हाँ या अच्छा 'से अधिक कुछ सुनने को नहीं मिला l बापू ने उसके असमंजस को भांप लिया और कहा ---- " प्रत्येक में दोष भी रहते हैं और गुण भी l मेरी भी यही स्थिति है l पर वास्तविक मनुष्य वही है जो अपने दोषों को खोजकर उनके निवारण का सच्चे ह्रदय से प्रयत्न कर रहा हो l आपने दोषों को खोजने में मेरी मदद की अत: आपसे बड़ा मित्र और कौन होगा l "
No comments:
Post a Comment