एक फकीर प्रतिदिन सुबह के समय हाथों में दो मशालें लेकर बाजार में जाता । हर दुकान के सामने थोड़ी देर ठहरता और आगे बढ़ जाता ।
एक व्यक्ति ने पूछा --" बाबा ! तुम दिन के समय मशालें लेकर क्या देखते फिरते हो ? क्या ढूंढते हो ?फकीर ने उत्तर दिया --" मैं मनुष्य खोज रहा हूँ । इतनी भीड़ में हमें अभी तक कोई मनुष्य नहीं मिला । "
उस व्यक्ति द्वारा मनुष्य की परिभाषा पूछने पर फकीर बोला --" मैं उसको मनुष्य कहता हूँ , जिसमे काम की वासना और क्रोध की अग्नि न हो , जो इंद्रियों का दास न होकर उनका स्वामी हो और क्रोध के आवेश में आकर अपने लिये और दूसरों के लिये आग की लपटें उभारने का यत्न नहीं करता हो । "
एक व्यक्ति ने पूछा --" बाबा ! तुम दिन के समय मशालें लेकर क्या देखते फिरते हो ? क्या ढूंढते हो ?फकीर ने उत्तर दिया --" मैं मनुष्य खोज रहा हूँ । इतनी भीड़ में हमें अभी तक कोई मनुष्य नहीं मिला । "
उस व्यक्ति द्वारा मनुष्य की परिभाषा पूछने पर फकीर बोला --" मैं उसको मनुष्य कहता हूँ , जिसमे काम की वासना और क्रोध की अग्नि न हो , जो इंद्रियों का दास न होकर उनका स्वामी हो और क्रोध के आवेश में आकर अपने लिये और दूसरों के लिये आग की लपटें उभारने का यत्न नहीं करता हो । "
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