हर इनसान के अंदर देवता का वास होता है , जो उसे अच्छे कार्य के लिये प्रेरित करता है और ठीक इसके विपरीत हर इनसान के भीतर एक शैतान भी होता है । शैतान हमेशा अपने लिये राह ढूँढ़ता रहता है , उचित परिस्थिति का इंतजार करता रहता है और अनुकूल परिस्थितियां पाते ही बाहर निकल आता है , यहीं से अपराध की यात्रा प्रारम्भ होती है जो व्यक्ति को एक गहरे दलदल में धकेल देती है । ऐसा व्यक्ति स्वयं परेशान रहता है और औरों को भी परेशान करता है ।
इसके विपरीत अंदर के देवता को प्रश्रय देने पर वह हमें सत्प्रेरणा प्रदान करता है । उत्कृष्ट विचार और श्रेष्ठ चिंतन करने से , सतत श्रेष्ठ कर्म करने से हमारे अंदर देवत्व का उदय होता है । निष्काम कर्म करने से , औरों के प्रति सदभाव रखने से , कष्ट सहकर भी सेवा कार्य करने से भावनाएं निर्मल होती हैं , ह्रदय परिष्कृत होता है । अंदर की शैतानियत को मारने की यही प्रक्रिया है । हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि हम सबको सद्बुद्धि मिले । हमारे अंतर्जगत और बाह्य जगत में सर्वत्र सद्बुद्धि का प्रकाश हो
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