शास्त्री ने कहा था --- " फूल कहीं भी हो खिलेगा ही l बगीचे में हो या जंगल में , बिना खिले उसे मुक्ति नहीं है l बगीचे का फूल पालतू फूल है , उसकी चिंता स्वयं उसे नहीं रहती l जंगल का फूल इतना चिंता मुक्त नहीं , उसे अपना पोषण आप जुटाना पड़ता है , अपना निखर आप करना पड़ता है l कहते हैं कि इसीलिए वह खिलता भी मंद गति से है l सौरभ भी धीरे - धीरे बिखेरता है l किन्तु उसकी सुगंध बड़ी तीखी होती है l काफी दूर तक वह अपनी मंजिल तय करती है l
यही बात मनुष्य के विकास में भी लागू है l सफलता की मंजिल भले ही देर से मिले , पर अपने पैरों की गई विकास यात्रा अधिक विश्वस्त होती है l अपने आप बढ़ने में सच्चाई और ईमानदारी रहती है l संसार में कार्य करने के लिए स्वयं का विश्वासपात्र बनना आवश्यक है l आत्मशक्तियों पर जो जितना अधिक विश्वास करता है , वह उतना ही सफल होता है l
यही बात मनुष्य के विकास में भी लागू है l सफलता की मंजिल भले ही देर से मिले , पर अपने पैरों की गई विकास यात्रा अधिक विश्वस्त होती है l अपने आप बढ़ने में सच्चाई और ईमानदारी रहती है l संसार में कार्य करने के लिए स्वयं का विश्वासपात्र बनना आवश्यक है l आत्मशक्तियों पर जो जितना अधिक विश्वास करता है , वह उतना ही सफल होता है l
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