8 June 2019

WISDOM ----- समाज में हो रहे अत्याचार पर द्रष्टिपात न कर केवल अपने स्वार्थ की और ही देखते रहना अमानवीय प्रवृति है

  यह  बात   सही  है  कि  मनुष्य के  जीवन  में  स्वार्थ  का  भी एक  स्थान  है   किन्तु  उस  स्वार्थ  को  निकृष्टता  ही  कहा  जायेगा   जिसका  संपादन  अथवा  जिसकी  पूर्ति   देश  व  समाज  को  क्षति  पहुंचाती  है  l  पं  श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' मरकर  भी  जो  अमर  हो  गए  '  में  लिखा  है ---- ' दुनिया  में  हेय  और  हीन  बनकर  ही  तो  काम  नहीं  चलता  l   यह  तो  मनुष्य  की  अपनी  कमजोरी  और  सोचने  का  ढंग  है   कि   अन्यायियों  के  तलवे  चाटने  से  ही  काम चलता  है  l वैसे  इतिहास   तथा  उदाहरण  साक्षी  है  कि संसार  में  एक  से  एक  बढ़कर  स्वाभिमानी   तथा  सिद्धांत  के  धनी  व्यक्ति  हुए  हैं    जिन्होंने  जीवन  दे  दिया  पर  स्वाभिमान  नहीं  दिया  l  '  उनका  कहना  है  कि  स्वार्थ  और  कायरता  के  कारण लोगों  की  आत्माएं  तेजहीन  हो  गई  हैं   l  
 विवेक  पर  मोह  का  आवरण  आ  गया  है   l  निकृष्टता   का   अनुकरण  करना  श्रेयस्कर  नहीं  होता  l  यदि  अनुकरण  ही  करना  हो  तो  संसार  में  श्रेष्ठताओं   और  श्रेष्ठ  व्यक्तियों  की  कमी  नहीं  है   l  '  

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