हिन्दू धर्म के संस्थापक इतने उदार , दूरदर्शी व न्यायप्रिय थे कि वे वर्तमान में प्रचलित जाति - पांति के कारण चल पड़े , ऊँच - नीच के भेदभाव को कदापि स्वीकार नहीं कर सकते थे l उनकी आत्माएं स्वर्ग में बैठी रो रहीं होंगी कि हमने किन उच्च उद्देश्यों को लेकर वर्णाश्रम धर्म की स्थापना की थी और आज लोगों ने उसकी कैसी दुर्गति बनाई और क्या से क्या कर के रख दिया l जाति , धर्म आदि के आधार पर होने वाले अत्याचार को धर्म कदापि स्वीकार नहीं करता l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय ' संस्कृति - संजीवनी श्रीमद्भागवत एवं गीता ' में पृष्ठ 1.114 पर लिखा है ----- " भारतीय संस्कृति यदि ऐसी ओछी , संकीर्ण एवं अन्यायी रही होती तो संसार में इतने दिनों तक उसका अस्तित्व न टिक सका होता l विवेकशील लोगों ने उसे दुनिया के परदे पर से कब का मिटा दिया होता l अन्यायी व्यक्तियों का नाश हुआ है तो अन्यायी परम्पराएँ ही कैसे जीवित बनी रहतीं ? " आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- " जब से हमने ऐसी अहंवादी अन्याय मूलक परम्पराएँ अपनायीं तभी से हमारा पतन हुआ l पिछले एक हजार वर्षों तक हमें विदेशी आक्रमणकारियों के जो लोमहर्षक अत्याचार सहने पड़े , उन्हें यदि हमारी अन्याय मूलक परम्पराओं का दंड कहा जाये तो अतिशयोक्ति न होगी l हमने अपनों को सताया दूसरे हमें सताने आ गए l सेर को सवा सेर मिल गया l दूसरों को न्याय का उपदेश देने से पहले हमें अपने हाथ अनीति की कीचड़ से सने हुए न रखने का प्रयत्न करना होगा l "
गीता का समता द्रष्टि वाला आदर्श --- 'सब प्राणियों में भगवान है , एक ही आत्मा सब में समाया हुआ है ' हमें अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सम्मिलित रखना चाहिए l इसके बिना हमारी सामूहिक प्रगति अवरुद्ध बनी रहेगी l
स्वामी विवेकानन्द जाति के कायस्थ थे l इस जातीय कारण से उन्हें बहुत बार अपमान और घोर विरोध का भी सामना करना पड़ा लेकिन भारत को धर्म का सन्देश देने , विश्व में भारत का सम्मान बढ़ाने, जन - सेवा के कार्यक्रमों को चलाने, भारतीय समाज को संगठित करने व उसे जगाने के लिए वे सदैव प्रयास करते रहे l इन महान सेवाओं के कारण स्वामी विवेकानंद भारत की महान विभूतियों की श्रेणी में गिने जाते हैं l कायस्थ की द्रष्टि से उन्हें कोई नहीं मानता वरन भारतीय जनता के , युवाओं के प्रेरणा - स्रोत , महापुरुष के रूप में माने जाते हैं l
महात्मा गाँधी वैश्य जाति में उत्पन्न हुए पर वे अपनी महानता के कारण ब्राह्मणों के ब्राह्मण , विश्व में पूजनीय बापू बने l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय ' संस्कृति - संजीवनी श्रीमद्भागवत एवं गीता ' में पृष्ठ 1.114 पर लिखा है ----- " भारतीय संस्कृति यदि ऐसी ओछी , संकीर्ण एवं अन्यायी रही होती तो संसार में इतने दिनों तक उसका अस्तित्व न टिक सका होता l विवेकशील लोगों ने उसे दुनिया के परदे पर से कब का मिटा दिया होता l अन्यायी व्यक्तियों का नाश हुआ है तो अन्यायी परम्पराएँ ही कैसे जीवित बनी रहतीं ? " आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- " जब से हमने ऐसी अहंवादी अन्याय मूलक परम्पराएँ अपनायीं तभी से हमारा पतन हुआ l पिछले एक हजार वर्षों तक हमें विदेशी आक्रमणकारियों के जो लोमहर्षक अत्याचार सहने पड़े , उन्हें यदि हमारी अन्याय मूलक परम्पराओं का दंड कहा जाये तो अतिशयोक्ति न होगी l हमने अपनों को सताया दूसरे हमें सताने आ गए l सेर को सवा सेर मिल गया l दूसरों को न्याय का उपदेश देने से पहले हमें अपने हाथ अनीति की कीचड़ से सने हुए न रखने का प्रयत्न करना होगा l "
गीता का समता द्रष्टि वाला आदर्श --- 'सब प्राणियों में भगवान है , एक ही आत्मा सब में समाया हुआ है ' हमें अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सम्मिलित रखना चाहिए l इसके बिना हमारी सामूहिक प्रगति अवरुद्ध बनी रहेगी l
स्वामी विवेकानन्द जाति के कायस्थ थे l इस जातीय कारण से उन्हें बहुत बार अपमान और घोर विरोध का भी सामना करना पड़ा लेकिन भारत को धर्म का सन्देश देने , विश्व में भारत का सम्मान बढ़ाने, जन - सेवा के कार्यक्रमों को चलाने, भारतीय समाज को संगठित करने व उसे जगाने के लिए वे सदैव प्रयास करते रहे l इन महान सेवाओं के कारण स्वामी विवेकानंद भारत की महान विभूतियों की श्रेणी में गिने जाते हैं l कायस्थ की द्रष्टि से उन्हें कोई नहीं मानता वरन भारतीय जनता के , युवाओं के प्रेरणा - स्रोत , महापुरुष के रूप में माने जाते हैं l
महात्मा गाँधी वैश्य जाति में उत्पन्न हुए पर वे अपनी महानता के कारण ब्राह्मणों के ब्राह्मण , विश्व में पूजनीय बापू बने l
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