'अन्याय को सहन करना , पाप से सहयोग करने एवं उसे बढ़ावा देने के समान है l प्रतिरोध न करने से अन्यायी की हिम्मत बढ़ती है और वह दूने - चौगुने साहस के साथ अपनी सफलता पर गर्व करता हुआ और अधिक अत्याचार करता है l '
आज की परिस्थिति में दुष्ट मनुष्य के साथ भी व्यक्तिगत रूप से मरने - मारने का युद्ध नहीं हो सकता l अब अनीति के विरुद्ध संघर्ष के दूसरे तरीके हैं --- असहयोग , विरोध और मर्यादित संघर्ष -- यह आज की स्थिति में संभव है l अविद्दा , बीमारी , गरीबी , मूढ़ता , अन्धविश्वास , रूढ़िवादिता , कायरता , भीरुता , स्वार्थपरता , संकीर्णता , व्यसन , अहंकार आदि के रूप में असुरता जन - जन के मन में गहराई तक समा गई है l असंयम , आलस और अज्ञान ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है l इस असुरता के नाश के लिए अब युद्ध किसी एक व्यक्ति विशेष , जाति या धर्म विशेष के विरुद्ध नहीं अपितु दुष्प्रवृतियों के विरुद्ध करना चाहिए l
किसी जाति , किसी धर्म में जन्म लेने से व्यक्ति बुरा नहीं होता l काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष आदि मानवीय कमजोरियों के कारण ही व्यक्ति दुष्कर्म करता है , अपराध में संलग्न होता है l
आज की परिस्थिति में दुष्ट मनुष्य के साथ भी व्यक्तिगत रूप से मरने - मारने का युद्ध नहीं हो सकता l अब अनीति के विरुद्ध संघर्ष के दूसरे तरीके हैं --- असहयोग , विरोध और मर्यादित संघर्ष -- यह आज की स्थिति में संभव है l अविद्दा , बीमारी , गरीबी , मूढ़ता , अन्धविश्वास , रूढ़िवादिता , कायरता , भीरुता , स्वार्थपरता , संकीर्णता , व्यसन , अहंकार आदि के रूप में असुरता जन - जन के मन में गहराई तक समा गई है l असंयम , आलस और अज्ञान ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है l इस असुरता के नाश के लिए अब युद्ध किसी एक व्यक्ति विशेष , जाति या धर्म विशेष के विरुद्ध नहीं अपितु दुष्प्रवृतियों के विरुद्ध करना चाहिए l
किसी जाति , किसी धर्म में जन्म लेने से व्यक्ति बुरा नहीं होता l काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष आदि मानवीय कमजोरियों के कारण ही व्यक्ति दुष्कर्म करता है , अपराध में संलग्न होता है l
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