चंपारण आंदोलन के लिए गाँधी जी के पहुँचने पर जो माहौल बना , उससे राजेंद्र बाबू ने अपनी निजी वकालत बंद कर दी एवं कई माह तक नील की खेती करने वाले अंग्रेज जमींदारों द्वारा गरीब किसानों पर किये जाने वाले अत्याचारों विरुद्ध लोगों के बयान लिखने लगे l गाँधी जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर राजेंद्र बाबू ने अपने आपको पूरी तरह उन्हें सौंप दिया l उनने गाँधी जी के साथ बैठकर ' तीन कठिया ' इस अन्याय -मूलक प्रणाली को सदा के लिए बंद करा दिया l चंपारण के किसानों की कायापलट गई और वह क्षेत्र अंग्रेजों के जाने तक एक संमृद्ध क्षेत्र के रूप में विकसित हो गया l
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