पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- रिश्तों की डोर बहुत नाजुक होती है l इन पर कड़ाई , सख्ती आजमाने से यह डोर टूट जाती है l हर व्यक्ति अपनी मरजी से दूसरों को चलाना चाहता है , उसे लगता है कि जैसा वह चाहता है , वैसा ही दूसरा व्यक्ति करे l यदि कार्य उसकी मरजी का नहीं होता तो वह नाराज होता है , चीखने - चिल्लाने लगता है l ' -------- एक संन्यासी अपने शिष्यों के साथ नदी के तट पर नहाने पहुंचा l वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक बात करते करते एक - दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर - जोर से चिल्लाने लगे l संन्यासी ने यह देखकर शिष्यों से पूछा --- " क्रोध में लोग एक - दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ? जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या जरुरत है , जो कहना है वह आप धीमी आवाज में भी तो कह सकते हैं l " शिष्य कुछ उत्तर न दे पाए l तब संन्यासी ने समझाया ---- " जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके हृदय एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं और इस अवस्था में वे एक - दूसरे को बिना चिल्लाए , नहीं सुन सकते l वे जितना अधिक क्रोधित होंगे , उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा l लेकिन जब दो लोग प्रेम में होते हैं , तब वे चिल्लाते नहीं , बल्कि धीरे - धीरे बात करते हैं क्योंकि उनके हृदय करीब होते हैं , उनके बीच की दूरी नाममात्र की रह जाती है l और जब वे एक -दूसरे को हद से ज्यादा चाहने लगते हैं , तब वे बोलते ही नहीं , वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं l इसलिए ऐसे शब्द किसी से मत बोलो , जिससे हमारे बीच की दूरियाँ बढ़ें , नहीं तो एक समय ऐसा आएगा कि ये दूरी इतनी अधिक बढ़ जाएगी कि हमें वापस लौटने का रास्ता भी नहीं मिलेगा l ' आचार्य श्री लिखते हैं पारिवारिक जीवन में भी रिश्ते निभाते समय हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सदस्यों में आपस में बहस चाहे हो , लेकिन दिलों में दूरियाँ न हों , सब प्यार व सम्मान से रहें l
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