ऋषियों का वचन है ---- " तंत्र चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो , वह भक्ति और भक्त से सदैव ही कमजोर होता है l भक्त की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं और तंत्र भगवान से श्रेष्ठ कदापि नहीं हो सकता l " भक्ति सर्वोपरि है l भक्ति किसी बड़े एवं श्रेष्ठ तांत्रिक अनुष्ठान से भी बढ़कर होती है l यदि तंत्र प्रयोग भक्त पर लगता भी है तो वैसा विधान होगा l इस संदर्भ में एक प्रसंग है ---- जगद्गुरु शंकराचार्य के शरीर त्यागने का समय निकट था l इस दौरान एक कापालिक क्रकच ने उन पर भीषण तंत्र का प्रयोग कर दिया l इसके प्रभाव से उन्हें भगंदर हो गया और अंत में उन्होंने अपनी देह को त्याग दिया l इस संबंध में तंत्र के महान आचार्य कहते हैं कि उनकी देह को तंत्र लगा तो यह विधान के अनुरूप ही था l लेकिन भगवान अपने भक्त को कष्ट देने वाले को कभी क्षमा नहीं करते , व्यक्ति को अपने दुष्कृत्य का परिणाम भोगना ही पड़ता है l कापालिक की आराध्या एवं इष्ट भगवती उससे अति क्रुद्ध हुईं , उन्होंने कहा ---- ' तूने शिव के अंशावतार मेरे ही पुत्र पर अत्याचार किया है l इसके प्रायश्चित के लिए तुझे अपनी भैरवी की बलि देनी पड़ेगी l ' कापालिक भैरवी से अति प्रेम करता था , परन्तु उसे उसको मारना पड़ा l उसको मरने के बाद वह विक्षिप्त हो गया और अपना ही गला काट दिया l इस प्रकार उस तांत्रिक का अंत बड़ा भयानक हुआ l कर्मफल से कोई नहीं बचा है l यही संसार है , यहाँ अँधेरा - उजाला , दिन - रात , तंत्र -मन्त्र सब कुछ है l पर अध्यात्म की शक्ति सर्वोपरि है
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