बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद एल. एल. बी. के अंतिम वर्ष में थे l उन्हें लक्ष्य कर के स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने आत्मीयता पूर्वक कहा था ---- " क्यों रे नरेन ! तू कब तक भटकता रहेगा l वकालत कर के झूँठ - मूँठ पैसा कमाने के चक्कर में पड़ा तो तेरे हाथ का छुआ पानी नहीं पीऊंगा l " उनकी बात स्वीकार कर वे पूरी तरह विद्या के क्षेत्र में कूद पड़े l विद्या में प्रवीण होकर चमत्कारी व्यक्तित्व के स्वामी बन जाने पर किसी ने ठाकुर से पूछा --- " उनसे क्या कराएँगे l " गले में कैंसर हो जाने के कारण ठाकुर बोल नहीं सकते थे , उन्होंने कोयले का टुकड़ा उठाकर जमीन पर लिखा --- " नरेन शिक्षा दिबे l " नरेंद्र विद्या का शिक्षण देगा l स्वामी विवेकानंद कहते थे ---- " मेरे गुरु ने मुझे विद्या दी है l इसको पाकर मैं दार्शनिक नहीं हुआ , तत्ववेत्ता भी नहीं बना हूँ l संत बनने का दावा नहीं करता l परन्तु मैं इन्सान हूँ और इन्सानों को प्यार करता हूँ l "
No comments:
Post a Comment