पुराण में कथा है कि परशुराम जी ने शिवजी से शिक्षा प्राप्त की l शिक्षा पूर्ण होने पर शिवजी ने अपने प्रिय शिष्य को ' परशु ' उपहार में दिया l संसार में फैले हुए अधर्म के उन्मूलन के लिए यह उपहार दिया और कहा --- " केवल दान , धर्म , जप -तप , व्रत , उपवास ही धर्म के लक्षण नहीं हैं l अनीति से लड़ने का कठोर व्रत लेना भी धर्म साधना का एक अंग है l शिवजी का आशीर्वाद पाकर परशुराम जी ने अनाचार विरोधी महान अभियान की तैयारी की l उनका कहना था कि अनीति ही हिंसा है और अत्याचार , अन्याय , अनीति के विरुद्ध खड़े होना मानवता का चिन्ह है l ' अनाचारी का मुकाबला अकेले नहीं किया जा सकता , यह बात हर युग में सत्य है अत: उन्होंने जन -सहयोग से अत्याचारियों के विनाश का व्यापक अभियान चलाया और इक्कीस बार उन्होंने अत्याचारियों , अहंकारियों का उन्मूलन कर पृथ्वी की सुरक्षा की l उनका कहना था कि किसी के पास कितनी ही बड़ी शक्ति क्यों न हो , जनता की संगठित सामर्थ्य से कम ही रहती है l आज संसार में शांति के लिए परशुराम जी जैसी शक्ति की जरुरत है l हर युग की समस्याएं भिन्न -भिन्न हैं लेकिन उनका निदान संगठित होकर ही किया जा सकता है l आज हमारी कृषि , कला , साहित्य , सम्पूर्ण पर्यावरण ही प्रदूषित हो गया है l कृषि में रसायन घुल जाने से लोग स्वस्थ नहीं हैं , प्रतिरोधक शक्ति कम हो गई है , ,कला और साहित्य के प्रदूषण से लोगों के चरित्र में गिरावट आई है l अब जागरूक होने की जरुरत है l आज सारा संसार एक मंच पर है , जिसके पास शक्ति है , सम्पदा है वही सारी दुनिया पर अपनी हुकूमत चलाना चाहता है ऐसे में अपने अस्तित्व को बचाना चुनौती है l जागरूक और ईमानदार होकर ही हम अपनी कृषि , शिक्षा , चिकित्सा , कला और संस्कृति को पुनर्जीवित कर सकते हैं l
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