एक संत के पास एक व्यक्ति पहुंचा , बहुत दुखी था l संत ने उससे पूछा --क्या बात है , बताओ , इतना परेशान क्यों हो ? संत का स्नेह पा कर उसने अपने मन की सारी बात कह डाली कि उसकी पत्नी उससे बहुत झगड़ा करती है , कटु शब्द बोलती है , वह परेशान हो चुका है और तलाक देना चाहता है l कैसे भी पीछा छूटे , कोई उपाय बताएं ? संत ने उसकी सारी बातें बहुत ध्यान से सुनी , फिर पूछा -- वह एक महीने में कितनी बार झगड़ा करती है ? उस व्यक्ति ने कहा --- यही कोई पांच , छह बार l संत ने पूछा --- और शेष दिन ? उस व्यक्ति ने कहा --- शेष दिन तो वह मुझे गरम खाना खिलाती है , मेरी माँ का भी बहुत ध्यान रखती है , बच्चों को स्कूल भेजना , सारी जिम्मेदारी उठाती है , बच्चों को घर में पढ़ाना आदि सब काम करती है l तब संत ने कहा ---- ' पच्चीस दिन के सुखी जीवन के लिए तुम उसका 5 -6 दिन का कटु व्यवहार सहन नहीं कर सकते ? अपने मन के तराजू के एक पलड़े में उससे मिलने वाले सुख को रखो और दूसरे पलड़े में उससे जो कष्ट होता है उन कष्टों को रखो , फिर देखो कौन सा पलड़ा भारी है ? जल्दबाजी में कोई निर्णय न लो अन्यथा पछतावे के सिवा और कुछ हासिल नहीं होगा l ' संत के वचनों से उस व्यक्ति के ऊपर छाई हुई नकारात्मकता हट गई , उसकी आँखें खुल गईं l सुखी जीवन जीने का मन्त्र उसे मिल गया l
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