हमारे आचार्य , ऋषियों आदि का कहना है कि किसी भी स्थिति में अति नहीं होनी चाहिए l महात्मा बुद्ध ने कहा भी है --- वीणा के तार को इतना मत कसो कि वह टूट जाए , और इतना ढीला भी मत छोड़ो कि वह बजना ही छोड़ दे l
अति जहाँ भी है , वह मनुष्य के लिए मुसीबत उत्पन्न करती है l यदि लालच , तृष्णा , अहंकार अति का है तो ये दुर्गुण उस व्यक्ति के हृदय की संवेदना को सोख लेते हैं , फिर उसके अमानुषिक व्यवहार से सारा समाज त्रस्त होने लगता है l
पूंजीवादी व्यवस्था में अति उत्पादन की समस्या है l अनेक कारण हैं जिनकी वजह से अति उत्पादन हो जाता है , इससे एक नई समस्या उत्पन्न होती है कि इसे खपाएं कहा ? उपभोग सामग्री का अतिउत्पादन हो तो उसे तो कहीं भी खपाया जा सकता है लेकिन यदि नशीले मादक पदार्थ , कीटनाशक , अस्त्र - शस्त्र , हथियार , विभिन्न तरह की दवाएं , इनके उपकरण आदि का अतिउत्पादन हो तो उसे किसी बाजार में खपाना , बेचना एक कठिन समस्या होती है l यदि पूंजीपति में मानवीयता नहीं है तो वह साम , दाम , दंड , भेद किसी भी नीति से अपने माल को बेचकर लाभ कमा लेगा , उसे केवल अपने लाभ की चिंता है , लोगों के हित की परवाह नहीं है l
इसलिए ऋषियों ने मध्यम मार्ग पर बल दिया है l अपना भी हित हो जाये और संसार का अहित न हो l ' अति का अंत होता है l इसलिए ' जियो और जीने दो ' l
व्यवस्था चाहे जो हो --- पूंजीवाद , समाजवाद , प्रजातंत्र , राजतन्त्र --- यदि इनमे मानवता , संवेदना , करुणा , भाईचारे , परहित आदि सद्गुणों का समावेश होगा तभी इस धरती पर लोग सुख - शांति से जीवन जी सकेंगे l
अति जहाँ भी है , वह मनुष्य के लिए मुसीबत उत्पन्न करती है l यदि लालच , तृष्णा , अहंकार अति का है तो ये दुर्गुण उस व्यक्ति के हृदय की संवेदना को सोख लेते हैं , फिर उसके अमानुषिक व्यवहार से सारा समाज त्रस्त होने लगता है l
पूंजीवादी व्यवस्था में अति उत्पादन की समस्या है l अनेक कारण हैं जिनकी वजह से अति उत्पादन हो जाता है , इससे एक नई समस्या उत्पन्न होती है कि इसे खपाएं कहा ? उपभोग सामग्री का अतिउत्पादन हो तो उसे तो कहीं भी खपाया जा सकता है लेकिन यदि नशीले मादक पदार्थ , कीटनाशक , अस्त्र - शस्त्र , हथियार , विभिन्न तरह की दवाएं , इनके उपकरण आदि का अतिउत्पादन हो तो उसे किसी बाजार में खपाना , बेचना एक कठिन समस्या होती है l यदि पूंजीपति में मानवीयता नहीं है तो वह साम , दाम , दंड , भेद किसी भी नीति से अपने माल को बेचकर लाभ कमा लेगा , उसे केवल अपने लाभ की चिंता है , लोगों के हित की परवाह नहीं है l
इसलिए ऋषियों ने मध्यम मार्ग पर बल दिया है l अपना भी हित हो जाये और संसार का अहित न हो l ' अति का अंत होता है l इसलिए ' जियो और जीने दो ' l
व्यवस्था चाहे जो हो --- पूंजीवाद , समाजवाद , प्रजातंत्र , राजतन्त्र --- यदि इनमे मानवता , संवेदना , करुणा , भाईचारे , परहित आदि सद्गुणों का समावेश होगा तभी इस धरती पर लोग सुख - शांति से जीवन जी सकेंगे l
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