पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " वर्तमान समय में मनुष्य जैसे - तैसे शिष्टाचार तो निभा लेता है , परन्तु जब बारी सदाचार को निभाने की आती है , तब वह औंधे मुँह गिर पड़ता है l स्वार्थलिप्सा , वासना और अहंता उसे दबोच लेते हैं l यही वजह है कि अच्छा करने के इरादे से निकलने वाले लोग भी कुछ दूर चलकर बुरा करने लगते हैं l उनकी आंतरिक दुर्गन्ध पूरे समाज में सड़ाँध फैलाने लगती है l इसे दूर करने के लिए आध्यात्मिक दृष्टिकोण , आध्यात्मिक चिंतन और आध्यात्मिक साधना की जरुरत पड़ती है l "
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