देवता और असुर इस संसार में शुरू से हैं l मनुष्य की दुष्प्रवृत्तियाँ ही उसे असुर बनती हैं l यह असुरता तब और बढ़ती जाती है जब न्याय व्यवस्था कमजोर होती है , लोगों को दंड का भय नहीं होता हृदयहीनता , बर्बरता ही असुरता है इसे अपराध , आतंक कोई भी नाम दिया जा सकता है l यह एक प्रकार की मानसिक विकृति है , आपराधिक प्रवृति के लोग इसे घटिया और वीभत्स हथकंडों के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं l ऐसी विकृति का परिणाम सम्पूर्ण समाज को भुगतना पड़ता है l
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