संस्कार नहीं बदलते l बाह्य रूप से मनुष्य स्वयं को कितना भी सभ्य , सुसंस्कृत दिखाने की कोशिश करे लेकिन अपने कार्यों से , अपनी बोली , अपने तौर - तरीके से वह स्वयं को प्रकट कर देता है , स्पष्ट हो जाता है कि उसके संस्कार कैसे हैं ? एक बोध कथा है -------- एक सधा हुआ ऊंट था l नक्कारखाने का कोई उत्सव होता तो उसकी पीठ पर नगाड़ा लाड कर चोबदार उसे बजाता हुआ चलता l ऊँट बहुत बूढ़ा हो गया l काम का न रहा तो उसे खुला छोड़ दिया गया , राजा का होने से कोई उसे मारता न था l ऊँट एक दिन किसी बुढ़िया के सूखते हुए अनाज को खाने लगा l बुढ़िया ने सूप बजाकर भगाना चाहा l ऊँट ने कहा ---- " जन्म भर नगाड़ों की आवाज सुनता रहा हूँ l तुम्हारे सूप से क्या डरने वाला हूँ l " आयु बीत जाने पर भी सारे जीवन भर के संस्कार छाये रहते हैं , किसी शिक्षा , किसी भी बात का कोई असर ही नहीं पड़ता l
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