पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " शक्तिसम्पन्न , समर्थ - बलशाली होने से अधिक महत्वपूर्ण है सद्गुण संपन्न होना , क्योंकि सद्गुणों के अभाव में शक्ति के दुरूपयोग की संभावना हमेशा बनी रहती है l गुणहीन व्यक्तियों के पास जो भी शक्ति आती है , वो हमेशा उसका दुरूपयोग करते हैं , फिर यह शक्ति चाहे सामाजिक हो , राजनीतिक हो या फिर वैज्ञानिक अथवा आध्यात्मिक l " भौतिक विज्ञान में मनुष्य ने बहुत प्रगति की है लेकिन यदि यह शक्ति किसी गुणहीन , संवेदनहीन व्यक्ति के हाथ में आ जाये तो वह पूरी दुनिया को कब्रिस्तान बना सकता है l रावण कितना विद्वान् और शक्तिसम्पन्न था लेकिन अपने अहंकार के वशीभूत होकर उन शक्तियों का दुरूपयोग करता था और स्वयं को गर्व से असुरराज कहा करता था l रावण एक विचार है , जब धन - वैभव और शक्ति के मद में लोगों की बुद्धि दुर्बुद्धि में बदल जाती है , उन्हें करने के लिए कोई सकारात्मक कार्य नजर ही नहीं आता तब वे मानवता को कष्ट पहुँचाने वाले , प्रकृति और पर्यावरण को नष्ट करने वाले कार्य कर के ही अपने जीवन को धन्य समझते हैं l ईश्वर ने प्राणीमात्र के लिए अनेक योनियां निश्चित की हैं , अब चयन करना व्यक्ति के हाथ में है , मनुष्य ही अपने कर्मों द्वारा अपने लिए चयन करता है कि उसे मनुष्य बनना है , पशु - पक्षी , कीट -पतंगे अथवा पिशाच l
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