किसी भी समाज में अन्धविश्वास , अंध परम्पराएँ , जाति , धर्म के नाम पर झगड़े , बेवजह की मारकाट -- ये सब कहीं न कहीं इस स्थिति को स्पष्ट करती हैं कि लोगों के पास कोई उत्पादक कार्य नहीं है और उत्पादक कार्य न होने के कारण लोग ऐसे अनुत्पादक कार्यों में उलझ जाते हैं या स्वार्थी तत्व उन्हें अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं l एक डॉक्टर , इंजीनियर , तकनीकी विशेषज्ञ , बड़े कलाकार ---- जिनके पास पाँव को मजबूती से टिकाने की अपनी जमीन है , वे इन सब में कभी नहीं उलझते l एक कारण यह भी है कि वैज्ञानिक युग में रहने के बाद भी हमारी चेतना विकसित नहीं हुई , स्वार्थ , लोभ , लालच , दिखावा आदि के कारण सामाजिक कुरीतियों को छोड़ना नहीं चाहते l अंध -परम्पराएँ समाज में कैसे बिना सोचे -समझे प्रचलित हो जाती हैं , यह बताने वाली एक कथा है ------- एक पंडित जी थे l उनके घर के पास एक गधा रहता था l l जब पूजा के समय पंडित जी शंख बजाते , तो गधा भी चिल्लाने लगता था l एक दिन पता चला कि गधा मर गया , सो पंडित जी ने उसकी स्मृति में बाल मुढवा लिए l शाम को वे बनिए की दुकान पर सौदा लेने गए l बनिए ने पूछा --- महाराज ! आज यह सिर घुटमुंड कैसा ? " पंडित जी ने कहा ---- ' अरे भाई ! शंखराज की इहलीला समाप्त हो गई l ' बनिया पंडित जी का यजमान था l उसने भी अपना सिर घुटवा लिया l जिसने भी यह सुना कि पंडित जी के कोई शंखराज नहीं रहे , वे अपना सिर घुटाते रहे l एक सिपाही बनिए के यहाँ आया , उसने तमाम गाँव वालों को सिर मुड़ाते देखा l जब उसे पता चला कि शंखराज जी महाराज नहीं रहे तो उसने भी अपना सिर घुटवा लिया l धीरे -धीरे सारी फौज सपाट -सर हो गई l अफसरों को बड़ी हैरानी हुई l उन्होंने पूछा ------- भाई ! क्या बात हो गई ? ' पता लगाते लगाते पंडित जी के घर तक पहुंचे और जब मालूम हुआ कि शंखराज कोई गधा था , तो मारे शर्म के सब के चेहरे झुक गए l
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