, जो ईश्वर से भय खाता है उसे दूसरा भय नहीं सताता l ' अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार --- संकीर्ण स्वार्थ , वासना और अहं से युक्त अनैतिक जीवन भय का प्रमुख कारण है l भय का सबसे घ्रणित पहलू अपने स्वार्थ के लिए , दूसरों पर छाये रहने की भावना से अधीनस्थ लोगों का शोषण करना है l ईश्वर विश्वास में बहुत शक्ति होती है लेकिन कलियुग में यह मनुष्य की दुर्बुद्धि है कि विज्ञानं में इतनी तरक्की कर के मनुष्य स्वयं को भगवान समझने लगा है l लेकिन सत्य यह है कि आज मनुष्य आंतरिक रूप से बहुत कमजोर और भयभीत है l मनुष्य की मानसिक कमजोरियां ही उसके भय का कारण हैं l वैराग्य शतक में भतृहरि ने भय की सूक्ष्म स्थिति का विशलेषण किया है कि ----- भोग में रोग का भय , सत्ता में शत्रुओं का भय , धन में चोरी होने का भय , सौन्दर्य में बुढ़ापे का भय , शरीर में मृत्यु का भय l इस तरह संसार में सब कुछ भय से युक्त है l उनके अनुसार त्याग का मार्ग निर्भयता की अवस्था की ओर ले जाता है l
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