यह संसार विविधताओं का है , विभिन्न मनोवृत्तियों के लोग इस धरती पर निवास करते हैं l अनेक लोग इस धरती पर युद्ध , दंगे , आतंक , भेदभाव , अत्याचार , शोषण , उत्पीड़न, छल , कपट , धोखा - ----जैसे सम्पूर्ण प्रकृति और मानवता को कष्ट देने वाले कार्य करते हैं , नकारात्मकता फैलाते है और उन्हें ऐसा करके अपने अहंकार को पोषित करने की झूठी ख़ुशी भी मिलती है l लेकिन दूसरी ओर अनेक ऐसे लोग भी हैं जो सन्मार्ग पर चलते हैं , उनके ह्रदय में करुणा है , संवेदना है , निष्काम भाव से परोपकार के कार्य करते हैं , श्रेष्ठ मन्त्रों के जप से इस धरती और प्रकृति के पोषण का और सकारात्मकता के विस्तार का कार्य करते हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " प्रकृति कुपात्रों का दंड एवं विनाश के रूप में उपयोग करती है और सत्पात्रों का श्रेष्ठता , सृजन एवं विकास हेतु चयन करती है l अत: भगवान की भक्ति कर के , सन्मार्ग पर चलकर स्वयं को मनोविकारों से मुक्त करना चाहिए और भगवान का कृपा पात्र बनना चाहिए l ' ताकि हमारा चयन श्रेष्ठ कार्यों के लिए हो l संसार में जो लोग भी श्रेष्ठ और सकारात्मक कार्य कर रहे हैं , उनका ईश्वर ने ही चयन किया है l जैसी व्यक्ति की मानसिक प्रवृत्तियों होती हैं उसी के अनुसार कार्य के लिए उसका चयन होता है l ------------------ त्रेतायुग में भगवान राम के ही परिवार में महारानी कैकेयी राम पर अपने पुत्र भरत से भी ज्यादा स्नेह , वात्सल्य लुटाती थीं लेकिन क्रोध , अहंकार , अभिमान और मंथरा जैसी ईर्ष्यालु दासी का कुसंग के कारण वे राजा दशरथ से राम के लिए वनवास और अपने पुत्र भरत के लिए राजसिंहासन मांगने लगीं l भगवान राम के अवतार का विशेष उद्देश्य था लेकिन अपने क्रोध और अहंकार जैसे मनोविकार के कारण महारानी कैकेयी राम , लक्ष्मण और सीताजी के चौदह वर्ष के वनवास के लिए उत्तरदायी बनीं l इसी तरह द्वापर युग में भीष्म पितामह ने कौरव , पांडव सभी राजकुमारों के लिए एक जैसी शिक्षा -दीक्षा और सुविधाएँ उपलब्ध कराएँ l पांडवों ने शालीनता , सहयोग , सत्य और धर्म का मार्ग चुना जबकि कौरवों ने ईर्ष्या , द्वेष , छल , कपट षड्यंत्र और उद्दंडता का मार्ग चुना l दुर्योधन आदि कौरव वंश के अंत के लिए उत्तरदायी बने जबकि पांडव संसार में धर्म और नीति की स्थापना और अत्याचार व अन्याय के अंत के लिए जाने जाते हैं l
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