आदि शंकराचार्य का नाम ज्ञान की साक्षात मूर्ति के रूप में लिया जाता है । एक बार एक जिज्ञासु उनसे मिलने के लिये पहुंचा । उसने शंकराचार्य से प्रश्न किया --" दरिद्र कौन है ?"
आचार्य शंकर ने उत्तर दिया -" जिसकी तृष्णा का कोई पार नहीं , वही सबसे बड़ा दरिद्र है । "
उस जिज्ञासु ने पुन: प्रश्न किया --" धनी कौन है ? "
शंकराचार्य बोले -" जो संतोषी है , वही धनी है । संतोष से बड़ा दूसरा धन नहीं है । "
जिज्ञासु ने पुन: पूछा -" वह कौन है , जो जीवित होते हुए भी मृतक के समान है ? "
उन्होंने उत्तर दिया -"वह व्यक्ति जो उद्दम हीन है और निराश है , उसका जीवन एक जीवित मृतक की भांति है । "
आदि शंकराचार्य के ये वचन मनुष्य के आंतरिक उत्कर्ष के लिये सर्वथा मूल्यवान हें । मनुष्य अपार तृष्णाओं को पार करने के प्रयत्न में दरिद्रता को प्राप्त करता है और संतोष धन को पाते ही ऐसे खजाने का स्वामी हों जाता है , जो कभी चुक नहीं सकता ।
आचार्य शंकर ने उत्तर दिया -" जिसकी तृष्णा का कोई पार नहीं , वही सबसे बड़ा दरिद्र है । "
उस जिज्ञासु ने पुन: प्रश्न किया --" धनी कौन है ? "
शंकराचार्य बोले -" जो संतोषी है , वही धनी है । संतोष से बड़ा दूसरा धन नहीं है । "
जिज्ञासु ने पुन: पूछा -" वह कौन है , जो जीवित होते हुए भी मृतक के समान है ? "
उन्होंने उत्तर दिया -"वह व्यक्ति जो उद्दम हीन है और निराश है , उसका जीवन एक जीवित मृतक की भांति है । "
आदि शंकराचार्य के ये वचन मनुष्य के आंतरिक उत्कर्ष के लिये सर्वथा मूल्यवान हें । मनुष्य अपार तृष्णाओं को पार करने के प्रयत्न में दरिद्रता को प्राप्त करता है और संतोष धन को पाते ही ऐसे खजाने का स्वामी हों जाता है , जो कभी चुक नहीं सकता ।
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