'सच्चा भक्त तो वही है , जो अपने अस्तित्व को भगवान और उनके भक्तों की सेवा में विलीन व विसर्जित कर दे ।'
घटना सेतुबंधन के समय की है । मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम वानर -भालुओं के साथ सेतुबंधन का कार्य संपन्न कर रहे थे । सभी इस कार्य में तल्लीन थे । भक्तराज हनुमानजी भी विशालकाय पर्वत शिलाओं को शीघ्र ला -लाकर नल -नील के हाथों में थमा रहे थे ।
उसी समय हनुमानजी ने देखा एक क्षुद्र प्राणी ' गिलहरी ' इधर उधर दौड़ रही है । उन्होंने उसे अपने हाथों में थाम लिया और कहा -" तुम यहां क्यों दौड़ -भाग कर रही हो , यहां तुम्हे चोट लग सकती है
गिलहरी ने कहा -" चोट से क्या डर ? राम -काज में प्राण निकलें , मेरी तो यही कामना है । उसने कहा -"मैं आपकी भांति सेतुबंधन में सहयोगी हूं , मैं आपकी भांति भारी -भरकम शिलाएँ तो ला नहीं सकती इसलिये मैं धूल में लोटकर अपने शरीर के रोएँ में धूल भर लेती हूं , फिर जहां सेतु बन रहा है वहां झाड़ देती हूं । " उस गिलहरी की बातें सुनकर हनुमानजी भाव -विभोर हो गये । वे चाहते थे उसे भगवान के पास पहुंचा दें परंतु गिलहरी ने कहा -" प्रभु अपने भक्तों को कभी नहीं बिसारते , वे स्वयं ही मुझे बुला लेंगे , तब तक मुझे अपना काम करने दें । " ऐसा कहकर गिलहरी अपने काम में जुट गई । हनुमानजी चकित हो उसकी भक्ति को निहारते रहे ।
उन्होंने सोचा -भगवान तो भक्त का संकट दूर करने अवश्य आते हैं , ऐसा सोचकर उन्होंने गिलहरी की पूंछ अपने पाँव के नाखून से धीरे से दबा दी , इस पीड़ा से तड़पकर गिलहरी ने राम -नाम का स्मरण किया । भक्त गिलहरी की पीड़ा से विकल भगवान राम दौड़कर आये और गिलहरी पर स्नेह से हाथ फेरते हुए बोले "हनुमानजी ने तुम्हारी पूंछ दबाकर जो कष्ट दिया , उसके लिये तुम उन्हें क्या दंड देना चाहती हो । "गिलहरी ने कहा -" प्रभु ! वे तो संकट मोचन हैं , मुझे आप तक पहुँचाने के लिये ही इन्होने यह किया था । " यह सुनकर भगवान मुस्करा दिये । गिलहरी के शरीर की धारियां प्रभु श्रीराम के दुलारने से ही देखी जाती हैं ।
घटना सेतुबंधन के समय की है । मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम वानर -भालुओं के साथ सेतुबंधन का कार्य संपन्न कर रहे थे । सभी इस कार्य में तल्लीन थे । भक्तराज हनुमानजी भी विशालकाय पर्वत शिलाओं को शीघ्र ला -लाकर नल -नील के हाथों में थमा रहे थे ।
उसी समय हनुमानजी ने देखा एक क्षुद्र प्राणी ' गिलहरी ' इधर उधर दौड़ रही है । उन्होंने उसे अपने हाथों में थाम लिया और कहा -" तुम यहां क्यों दौड़ -भाग कर रही हो , यहां तुम्हे चोट लग सकती है
गिलहरी ने कहा -" चोट से क्या डर ? राम -काज में प्राण निकलें , मेरी तो यही कामना है । उसने कहा -"मैं आपकी भांति सेतुबंधन में सहयोगी हूं , मैं आपकी भांति भारी -भरकम शिलाएँ तो ला नहीं सकती इसलिये मैं धूल में लोटकर अपने शरीर के रोएँ में धूल भर लेती हूं , फिर जहां सेतु बन रहा है वहां झाड़ देती हूं । " उस गिलहरी की बातें सुनकर हनुमानजी भाव -विभोर हो गये । वे चाहते थे उसे भगवान के पास पहुंचा दें परंतु गिलहरी ने कहा -" प्रभु अपने भक्तों को कभी नहीं बिसारते , वे स्वयं ही मुझे बुला लेंगे , तब तक मुझे अपना काम करने दें । " ऐसा कहकर गिलहरी अपने काम में जुट गई । हनुमानजी चकित हो उसकी भक्ति को निहारते रहे ।
उन्होंने सोचा -भगवान तो भक्त का संकट दूर करने अवश्य आते हैं , ऐसा सोचकर उन्होंने गिलहरी की पूंछ अपने पाँव के नाखून से धीरे से दबा दी , इस पीड़ा से तड़पकर गिलहरी ने राम -नाम का स्मरण किया । भक्त गिलहरी की पीड़ा से विकल भगवान राम दौड़कर आये और गिलहरी पर स्नेह से हाथ फेरते हुए बोले "हनुमानजी ने तुम्हारी पूंछ दबाकर जो कष्ट दिया , उसके लिये तुम उन्हें क्या दंड देना चाहती हो । "गिलहरी ने कहा -" प्रभु ! वे तो संकट मोचन हैं , मुझे आप तक पहुँचाने के लिये ही इन्होने यह किया था । " यह सुनकर भगवान मुस्करा दिये । गिलहरी के शरीर की धारियां प्रभु श्रीराम के दुलारने से ही देखी जाती हैं ।
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