11 December 2019

WISDOM ------

   भ्रष्टाचार    और  व्यभिचार  मनुष्य  को  पाप  की  ओर   धकेलते  हैं    l  पाप  का  अर्थ  हर   वह  कर्म  ,  जो  हमारी  चेतना  को  नीचे  गिराए   और  उस  कर्म  को  करने  पर   अपार  द्वंद   एवं   बेचैनी  पैदा  हो  जाये   तथा  करने  के   पश्चात्  अपराध बोध   लगने लगे  l   व्यभिचारी  का  पाप  पूरी  पीढ़ी  को  नष्ट  करने  के  लिए  पर्याप्त  है  l   उसकी  संतान  भी  उसी  आत्मघाती  डगर  पर  बढ़ती  है   l
     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "  व्यभिचार  ने  पीढ़ियों  को  इतना  खोखला  कर  दिया  है   कि   कोई  श्रेष्ठ  आत्मा   ऐसे  परिवार  में  जन्म  लेना  नहीं  चाहतीं   l   इन  पीढ़ियों  में  केवल  ऐसी  जीवात्माएं    आकृष्ट  होती  हैं  ,  जिनकी  अभिरुचि   इसी   प्रकार  की  होती  है   l   अत:  ऐसे  परिवार  में  ऐसी  जीवात्माओं  का  जमघट  लग  जाता  है  ,  जिनके  कर्म  मिलकर   न  केवल  स्वयं   एवं   परिवार  को  नष्ट  करते  हैं  ,  बल्कि  वातावरण  को  भी  दूषित  करते  हैं  l   पश्चिम  का  उन्मुक्त   एवं   उच्छृंखल   यौनाचार  हमारे  समाज  में   असाध्य  रोग  के  समान   संक्रमित  हो   चुका   है   l  "
 जरुरी  है  मनुष्य  सदाचरण  करे  l   महान  आत्माएं  पवित्र  कोख  से  जन्म  लेती  हैं    ! 

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