11 September 2019

WISDOM ------ अनैतिकता समाज से मिटे तो बहुत से असाध्य रोग सहज ही नष्ट हो जायेंगे l

  एक  बार  अग्निवेश  ने  आचार्य  चरक  से  पूछा ---- " संसार  में  जो  अगणित  रोग  पाए  जाते  हैं  ,  उनका  कारण  क्या  है  ? " 
आचार्य  ने  उत्तर  दिया ---- " व्यक्ति  के  पास  जिस  स्तर  के  पाप  ( दुष्कर्म )  जमा  हो  जाते  हैं  ,  उसी  के  अनुरूप  शारीरिक  एवं  मानसिक  व्याधियां  उत्पन्न  होती  हैं  l  जिस  तरह  आहार - विहार   के  असंयम  से  शारीरिक  रोग  पनपता  है  ,   उसी  तरह   विचारणा,  चिंतन - मनन   एवं  कर्म  के  लिए  निर्धारित  नीति  मर्यादा  का   उल्लंघन  करने  के  कारण  मानसिक  रोग  उत्पन्न  होते  हैं  l   शरीर  और  मन  परस्पर  गुंथे  हुए  हैं   l  शारीरिक  रोग  कालांतर  में  मानसिक    और  मानसिक  रोग    शारीरिक  रोग  बन  जाते  हैं   l  "
                             समर्थ   वैद्य    जीवक  एक  बार    एक  रोगी  को  लेकर   चिंतित  थे  l  वह  पूर्ण रूप   से  स्वस्थ  था  किन्तु  उसकी  दाई  आँख  खुलती  नहीं  थी  l  उसके  शरीर  के  सभी  अंग  और  आँख  के   सभी  अवयव  सामान्य  थे  l  उन्होंने  तथागत  के  शिष्य   महास्थविर  रैवत  को  यह  सारी  समस्या  कथा  सुनाई  l  रैवत  मानवीय  चेतना  के  मर्मज्ञ  थे  l  सब  जानने  के   बाद  वे  बोले ---- "  जीवक !  तुम्हारे  रोगी  की  समस्या  शारीरिक  नहीं ,  मानसिक   है  l  उसने  अपने  जीवन  में नैतिकता  की  अवहेलना  की   है  l  इसी  वजह  से  यह  ग्रंथि  बनी  है   l  इसे  भगवान  बुद्ध  के  पास  ले जाओ  l " 
  उस  रोगी  ने  अपने  सभी  गलत  कार्य  ,  मन  की  सारी  व्यथा   भगवान  बुद्ध  को  सुना  दी  l  भगवान  ने  उसके  मस्तक  पर  हाथ  फेरा  l  उसकी  आँख  खुल  गई  ,  रोग  से  मुक्ति  मिली  l  किन्तु  जो  गलतियाँ  की  थी   उनकी  क्षतिपूर्ति  के  लिए  प्रायश्चित अनिवार्य  था  -- अत:  उसे  जनसेवा   का  व्रत  दिलाया  गया  l

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