' सेवा से संवाद के अवसर बनते हैं और संवेदना विकसित होती है । '
दशम सिख गुरु गोविंद सिंह आनंदपुर साहब में विराजमान थे । उन्हें प्यास लगी तो बोले -" कोई मुझे पवित्र हाथों से जल पिला दे । " एक धनी -मानी व्यक्ति उठा और जल ले आया । जल पात्र लेते समय गुरूजी का स्पर्श उस व्यक्ति के हाथ से हो गया । वे पूछ बैठे , "तुम्हारे हाथ तो बड़े कोमल हैं । " वह अपनी प्रशंसा सुनकर फूला न समाया । बोला -" गुरूजी मेरे अनेक सेवक हैं । मैंने स्वयं कोई सेवा -कार्य नहीं किया , इसलिये मेरे हाथ इतने कोमल हैं । "
गुरूजी ने ओंठों तक लाये हुए जल -पात्र रख दिया और गंभीर स्वर में बोले -" जिन हाथों ने कभी सेवा नहीं की है , वे पवित्र कैसे हुए ? पवित्रता तो सेवा से ही प्राप्त होती है । मैं तुम्हारे हाथ का जल ग्रहण नहीं कर सकता । " यह कहकर जलपात्र नीचे रख दिया ।
दशम सिख गुरु गोविंद सिंह आनंदपुर साहब में विराजमान थे । उन्हें प्यास लगी तो बोले -" कोई मुझे पवित्र हाथों से जल पिला दे । " एक धनी -मानी व्यक्ति उठा और जल ले आया । जल पात्र लेते समय गुरूजी का स्पर्श उस व्यक्ति के हाथ से हो गया । वे पूछ बैठे , "तुम्हारे हाथ तो बड़े कोमल हैं । " वह अपनी प्रशंसा सुनकर फूला न समाया । बोला -" गुरूजी मेरे अनेक सेवक हैं । मैंने स्वयं कोई सेवा -कार्य नहीं किया , इसलिये मेरे हाथ इतने कोमल हैं । "
गुरूजी ने ओंठों तक लाये हुए जल -पात्र रख दिया और गंभीर स्वर में बोले -" जिन हाथों ने कभी सेवा नहीं की है , वे पवित्र कैसे हुए ? पवित्रता तो सेवा से ही प्राप्त होती है । मैं तुम्हारे हाथ का जल ग्रहण नहीं कर सकता । " यह कहकर जलपात्र नीचे रख दिया ।
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