यदि पुण्य अथवा पाप प्रबल हों तोआध्यात्मिक साधनाएं संभव नहीं बन पड़तीं ; क्योंकि --
पुण्य अपने परिणाम में सुख-सम्रद्धि के साथ इतने दायित्व ला देता है कि इनके कारण साधनाएं संभव नहीं हो पातीं |
इसी तरह पाप अपने परिणाम में विपदाओं के इतने झंझावात खड़े कर देता है कि आध्यात्मिक साधना के बारे में सोचना तक संभव नहीं हो पाता |
इन दोनों ही स्थितियों में संभव और सरल है --- भगवान का स्मरण | हर पल , सोते-जागते , उठते बैठते , जीवन के प्रत्येक कार्य के साथ मन में ईश्वर को याद करना | निरंतर भगवान के स्मरण से ही व्यक्ति के अंत:करण में भक्ति का उदय होता है , ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है |
सूफी संत जुन्नैद नित्य पांच बार नमाज पढ़ते थे | एक दिन थके थे |एक समय की नमाज पढ़ना भूल गये | उन्हें किसी ने उठाया --" उठो ! नमाज पढ़ो | " जुन्नैद ने उपकारवश किये गये इस कर्म पर धन्यवाद देते हुए पूछा -- " तुम कौन हो भाई ? " उसने कहा - " मैं शैतान हूँ | "
संत ने कहा -- " तो फिर हमें क्यों उठाया ? तुम तो खुदा के मार्ग में बाधा पैदा करते हो , सचमुच गलतफहमी है तुम्हारे बारे में | "
शैतान बोला -- " पिछली बार तुम्हारी नमाज छूटी तो तुमने इतना क्रंदन किया कि खुदा स्वयं तुम्हारे दरवाजे पर आ गया | हम तुम्हे खुदा के नजदीक नहीं जाने देना चाहते | हमें देर करनी है | तुम्हारा नमाज न पढ़ना नमाज पढ़ने से भी ज्यादा खतरनाक है | इसलिये उठाया | "
कथा का सार यह है ---- हम अपना मन हमेशा प्रभु में रखें | हमेशा ईश्वर का स्मरण करने से कोई शैतान -- कोई गलत विचार भूलकर भी पास न आयेगा |
पुण्य अपने परिणाम में सुख-सम्रद्धि के साथ इतने दायित्व ला देता है कि इनके कारण साधनाएं संभव नहीं हो पातीं |
इसी तरह पाप अपने परिणाम में विपदाओं के इतने झंझावात खड़े कर देता है कि आध्यात्मिक साधना के बारे में सोचना तक संभव नहीं हो पाता |
इन दोनों ही स्थितियों में संभव और सरल है --- भगवान का स्मरण | हर पल , सोते-जागते , उठते बैठते , जीवन के प्रत्येक कार्य के साथ मन में ईश्वर को याद करना | निरंतर भगवान के स्मरण से ही व्यक्ति के अंत:करण में भक्ति का उदय होता है , ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है |
सूफी संत जुन्नैद नित्य पांच बार नमाज पढ़ते थे | एक दिन थके थे |एक समय की नमाज पढ़ना भूल गये | उन्हें किसी ने उठाया --" उठो ! नमाज पढ़ो | " जुन्नैद ने उपकारवश किये गये इस कर्म पर धन्यवाद देते हुए पूछा -- " तुम कौन हो भाई ? " उसने कहा - " मैं शैतान हूँ | "
संत ने कहा -- " तो फिर हमें क्यों उठाया ? तुम तो खुदा के मार्ग में बाधा पैदा करते हो , सचमुच गलतफहमी है तुम्हारे बारे में | "
शैतान बोला -- " पिछली बार तुम्हारी नमाज छूटी तो तुमने इतना क्रंदन किया कि खुदा स्वयं तुम्हारे दरवाजे पर आ गया | हम तुम्हे खुदा के नजदीक नहीं जाने देना चाहते | हमें देर करनी है | तुम्हारा नमाज न पढ़ना नमाज पढ़ने से भी ज्यादा खतरनाक है | इसलिये उठाया | "
कथा का सार यह है ---- हम अपना मन हमेशा प्रभु में रखें | हमेशा ईश्वर का स्मरण करने से कोई शैतान -- कोई गलत विचार भूलकर भी पास न आयेगा |
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