जैतवन में विशाल धर्म सम्मेलन चल रहा था | उस दिन भगवान बुद्ध ' आत्मोद्धार ' पर प्रवचन करने वाले थे | वे कह रहे थे --" दूसरों के विचार पढ़ने , संकल्प जानने और भावनाओं की थाह लेना तुम्हारे लिये कठिन है , पर अपनी परख सब आसानी से कर सकते हो | दूसरों को सुधारने की अपेक्षा जो अपने सुधार का प्रयत्न करता है , वह मोक्ष का सच्चा अधिकारी है | '
जिस तरह दर्पण में अपने चेहरे की मलिनता स्पष्ट हो जाती है और देखने वाला उसे ठीक कर लेता है , अपना मुख सुंदर बना लेता है , उसी प्रकार अपनी चेतना के दर्पण में मन की मलिनताओं को देखो | तुम्हारे विचार निर्मल हैं या नहीं ? क्या लोभ और मोह तुम्हे परेशान कर रहा है ? क्या दुर्व्यसन तुम्हारे पीछे पड़े हैं ? " " यदि उत्तर हाँ में मिले तो तत्काल अपनी दुर्बलताओं को मिटाने में जुट जाओ , देर और आलस्य न करो , आज जो गया तो फिर कल न आयेगा | आत्म परीक्षण और आत्म सुधार के इस क्रम में विलंब न करो | "
' तुम औरों का नहीं , अपना उद्धार आप कर सकते हो | '
जिस तरह दर्पण में अपने चेहरे की मलिनता स्पष्ट हो जाती है और देखने वाला उसे ठीक कर लेता है , अपना मुख सुंदर बना लेता है , उसी प्रकार अपनी चेतना के दर्पण में मन की मलिनताओं को देखो | तुम्हारे विचार निर्मल हैं या नहीं ? क्या लोभ और मोह तुम्हे परेशान कर रहा है ? क्या दुर्व्यसन तुम्हारे पीछे पड़े हैं ? " " यदि उत्तर हाँ में मिले तो तत्काल अपनी दुर्बलताओं को मिटाने में जुट जाओ , देर और आलस्य न करो , आज जो गया तो फिर कल न आयेगा | आत्म परीक्षण और आत्म सुधार के इस क्रम में विलंब न करो | "
' तुम औरों का नहीं , अपना उद्धार आप कर सकते हो | '
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