'देवालय टूटकर खंडहर बन सकते हैं, गिरकर समय के साथ नष्ट हो सकते हैं, लेकिन उत्तम ज्ञान और सद्विचार कभी नष्ट नहीं होते |'
श्रीमदभगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय सखा अर्जुन को अपनी विभूतियों के बारे में बताते हुए कहते हैं --ज्ञानवानों का ज्ञान मैं स्वयं हूँ |
ज्ञान की महिमा तो सभी कहते हैं लेकिन यह विडंबना भी बहुत है कि हर कोई ज्ञानवान होने का भ्रम पाले है | लोग समझते हैं, ज्ञान का मतलब विचार, फिर यह पुस्तक से मिले या किसी और से ,
ज्ञान का मतलब तो निजी अनुभव होता है, यह सर्वथा मौलिक होता है |
स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा है --" विज्ञान अर्थात विशेष रूप से ज्ञान प्राप्त करना | किसी ने दूध का नाम ही सुना है | किसी ने दूध देखा भर है और किसी ने दूध पिया है | जिसने सिर्फ सुना है, वह अज्ञानी है | जिसने देखा है , वह ज्ञानी है और जिसने पिया है, वह विज्ञानी है, विशेष रूप से ज्ञान उसी को हुआ है | "
गुरु-शिष्य के बारे में एक कहानी है-- गुरु थे गुरजिएफ और शिष्य थे ऑसपेंस्की | उनकी पुस्तक ' 'टर्शीयम ओर्गेनम ' बहुत प्रसिद्ध हो चुकी थी | ऐसा प्रसिद्ध लेखक ऑसपेंस्की जब गुरजिएफ के पास पहुंचा तो गुरजिएफ ने उनसे कहा --" पहले तुम यह कागज और कलम लो और इसमें लिख दो कि तुम क्या-क्या जानते हो | इसमें तुम अपने ज्ञान के बारे में लिखो | जो कुछ तुम नहीं जानते होगे, मैं उसके बारे में तुम्हें बताऊंगा | " ऑसपेंस्की ने बात मानी | वह कमरे में गये, बहुत सोच-विचार किया कि ' उसने लिखा तो बहुत है, परंतु यथार्थ में वह जानता क्या है, उसका निजी अनुभव कितना है ? ' बहुत सोचा, परंतु कोई निजी अनुभव उन्हें समझ में न आया | बस ! उनकी आँखों से आँसू की कुछ बूँदें उस कागज पर ढुलक पड़ीं | इन आंसू की बूँदों में सच्चाई थी, शिष्यत्व था | वह यही आँसू से भीगा हुआ कागज लेकर गुरजिएफ के पास चले गये | गुरजिएफ ने उनके कागज को देखा और गले लगा लिया और बोले--" तुम सच्चे शिष्य हो, तुम अधिकारी हो ज्ञान के | " ऐसा ज्ञान बनता है भगवान की विभूति, इसी ज्ञान को भगवान अपना स्वरुप कहते हैं |
श्रीमदभगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय सखा अर्जुन को अपनी विभूतियों के बारे में बताते हुए कहते हैं --ज्ञानवानों का ज्ञान मैं स्वयं हूँ |
ज्ञान की महिमा तो सभी कहते हैं लेकिन यह विडंबना भी बहुत है कि हर कोई ज्ञानवान होने का भ्रम पाले है | लोग समझते हैं, ज्ञान का मतलब विचार, फिर यह पुस्तक से मिले या किसी और से ,
ज्ञान का मतलब तो निजी अनुभव होता है, यह सर्वथा मौलिक होता है |
स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने कहा है --" विज्ञान अर्थात विशेष रूप से ज्ञान प्राप्त करना | किसी ने दूध का नाम ही सुना है | किसी ने दूध देखा भर है और किसी ने दूध पिया है | जिसने सिर्फ सुना है, वह अज्ञानी है | जिसने देखा है , वह ज्ञानी है और जिसने पिया है, वह विज्ञानी है, विशेष रूप से ज्ञान उसी को हुआ है | "
गुरु-शिष्य के बारे में एक कहानी है-- गुरु थे गुरजिएफ और शिष्य थे ऑसपेंस्की | उनकी पुस्तक ' 'टर्शीयम ओर्गेनम ' बहुत प्रसिद्ध हो चुकी थी | ऐसा प्रसिद्ध लेखक ऑसपेंस्की जब गुरजिएफ के पास पहुंचा तो गुरजिएफ ने उनसे कहा --" पहले तुम यह कागज और कलम लो और इसमें लिख दो कि तुम क्या-क्या जानते हो | इसमें तुम अपने ज्ञान के बारे में लिखो | जो कुछ तुम नहीं जानते होगे, मैं उसके बारे में तुम्हें बताऊंगा | " ऑसपेंस्की ने बात मानी | वह कमरे में गये, बहुत सोच-विचार किया कि ' उसने लिखा तो बहुत है, परंतु यथार्थ में वह जानता क्या है, उसका निजी अनुभव कितना है ? ' बहुत सोचा, परंतु कोई निजी अनुभव उन्हें समझ में न आया | बस ! उनकी आँखों से आँसू की कुछ बूँदें उस कागज पर ढुलक पड़ीं | इन आंसू की बूँदों में सच्चाई थी, शिष्यत्व था | वह यही आँसू से भीगा हुआ कागज लेकर गुरजिएफ के पास चले गये | गुरजिएफ ने उनके कागज को देखा और गले लगा लिया और बोले--" तुम सच्चे शिष्य हो, तुम अधिकारी हो ज्ञान के | " ऐसा ज्ञान बनता है भगवान की विभूति, इसी ज्ञान को भगवान अपना स्वरुप कहते हैं |
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