एक बार तथागत अपने शिष्यों के साथ कौशाम्बी पधारे | वहां के लोगों ने उन्हें खूब तिरस्कृत किया | यह देखकर आनंद बोले --" भगवन ! यहाँ के लोग बहुत खराब हैं, कहीं और चलना चाहिये | " तथागत ने कहा --" आनंद यदि वहां के लोगों ने भी अपमान किया तो हम क्या करेंगे ? " आनंद बोले --" हे प्रभु ! हम कहीं और चले जायेंगे | "
बुद्ध हँसकर बोले --" आनंद ! स्थान बदल लेने मात्र से अंत:करण नहीं बदल जाता |सेवा का अर्थ ही दीन-हीन, अज्ञानी व्यक्तियों को ऊपर उठाना और सन्मार्ग पर प्रेरित करना है | उसके लिये कहीं भी कार्य करने को तैयार रहना चाहिये | " बुद्ध के वहां रहने से उस स्थान के लोगों के ह्रदय स्वत: परिवर्तित हो गये |
बुद्ध हँसकर बोले --" आनंद ! स्थान बदल लेने मात्र से अंत:करण नहीं बदल जाता |सेवा का अर्थ ही दीन-हीन, अज्ञानी व्यक्तियों को ऊपर उठाना और सन्मार्ग पर प्रेरित करना है | उसके लिये कहीं भी कार्य करने को तैयार रहना चाहिये | " बुद्ध के वहां रहने से उस स्थान के लोगों के ह्रदय स्वत: परिवर्तित हो गये |
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