' ज्ञान व कर्म को जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में सत्प्रयोजन से जोड़ दिया हो, भक्ति की भाव तरंगे स्वत: ऊपर उमड़ आती हैं | '
स्वामी विवेकानंद ने जब देखा कि भारत में साधु-सन्यासी अकर्मण्य जीवन का पर्याय बन गये हैं, इससे न उनका भला होता है न देश का । उन्होंने गुरु के अवसान के बाद रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य मात्र मठ निर्माण नहीं, अपितु जन-सेवा था । साथियों ने पूछा-- " फिर हमारी पूजा-आत्म-कल्याण का लक्ष्य कैसे सधेगा ? यह काम तो समाज सुधारकों का है । "
स्वामी जी बोले-- " यही हमारी असली पूजा है । बीमारों की सेवा, अज्ञाननिवारण, दरिद्र जनता को संतोष, यदि ये तीन कार्य हम सफलता से कर सके, तो ईश्वर हमसे उतना ही प्रसन्न होगा जितना वर्षों हिमालय पर तपस्या करने पर होता । "
स्वामी विवेकानंद ने जब देखा कि भारत में साधु-सन्यासी अकर्मण्य जीवन का पर्याय बन गये हैं, इससे न उनका भला होता है न देश का । उन्होंने गुरु के अवसान के बाद रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य मात्र मठ निर्माण नहीं, अपितु जन-सेवा था । साथियों ने पूछा-- " फिर हमारी पूजा-आत्म-कल्याण का लक्ष्य कैसे सधेगा ? यह काम तो समाज सुधारकों का है । "
स्वामी जी बोले-- " यही हमारी असली पूजा है । बीमारों की सेवा, अज्ञाननिवारण, दरिद्र जनता को संतोष, यदि ये तीन कार्य हम सफलता से कर सके, तो ईश्वर हमसे उतना ही प्रसन्न होगा जितना वर्षों हिमालय पर तपस्या करने पर होता । "
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