महर्षि अरविन्द ने अपने शिष्य नलिनी कान्त गुप्त से कहा था ---- " यदि किसी देश , समाज अथवा व्यक्ति के जीवन में यह पहचान करनी हो कि वह कितना विकास कर पायेगा तो यह परखो कि उसकी कल्पनाओं का स्तर एवं स्वरुप क्या है ? "
महर्षि ने कहा था ---- " अपनी कल्पनाओं के स्तर को नीचे मत गिरने दो l विषय - विलास , रास - रंग की कल्पनाओं से मानसिक ऊर्जा का क्षय होता है , जीवनी शक्ति बरबाद होती है l " उन्होंने कहा ---- ' सत्य पर आस्था रखो कि कल्पनाएँ साकार हो सकती हैं l बस ! इसके लिए योजनाबद्ध रूप से काम करने की जरुरत है l
बीसवीं सदी के दूसरे दशक में राबर्ट गोडार्ड ने रॉकेट की कल्पना की थी और अंतरग्रही यात्रा की सुनिश्चित संभावना बताई थी l उनके इस कथन के प्रकाशित होने पर अमेरिका के प्रमुख समाचार पत्र न्यूयार्क टाइम्स ने खिल्ली उड़ाई थी और कहा था --- ' यह कहने वाला स्कूली बच्चों से भी कम जानकार मालूम होता है l पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के बारे में जिसे कुछ पता होगा , वह ऐसी बेसिर -पैर कि कल्पना नहीं करेगा l "
इस टिपण्णी के पचास वर्ष के भीतर ही जब कैप केनेडी से चंद्रमा पर यात्रा करने वाला अन्तरिक्ष यान रवाना हुआ तो न्यूयार्क टाइम्स ने अपनी पुरानी टिप्पणी भूल सुधार के साथ व गोडार्ड से माफी मांगते हुए छापी थी और लिखा --- किसी भी नई परिकल्पना को ऐसे मजाक में उड़ा नहीं देना चाहिए l गंभीरतापूर्वक चिंतन करना चाहिए l कल्पनाओं ने ही तो विज्ञान का वर्तमान स्वरुप खड़ा किया है l
महर्षि ने कहा था ---- " अपनी कल्पनाओं के स्तर को नीचे मत गिरने दो l विषय - विलास , रास - रंग की कल्पनाओं से मानसिक ऊर्जा का क्षय होता है , जीवनी शक्ति बरबाद होती है l " उन्होंने कहा ---- ' सत्य पर आस्था रखो कि कल्पनाएँ साकार हो सकती हैं l बस ! इसके लिए योजनाबद्ध रूप से काम करने की जरुरत है l
बीसवीं सदी के दूसरे दशक में राबर्ट गोडार्ड ने रॉकेट की कल्पना की थी और अंतरग्रही यात्रा की सुनिश्चित संभावना बताई थी l उनके इस कथन के प्रकाशित होने पर अमेरिका के प्रमुख समाचार पत्र न्यूयार्क टाइम्स ने खिल्ली उड़ाई थी और कहा था --- ' यह कहने वाला स्कूली बच्चों से भी कम जानकार मालूम होता है l पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के बारे में जिसे कुछ पता होगा , वह ऐसी बेसिर -पैर कि कल्पना नहीं करेगा l "
इस टिपण्णी के पचास वर्ष के भीतर ही जब कैप केनेडी से चंद्रमा पर यात्रा करने वाला अन्तरिक्ष यान रवाना हुआ तो न्यूयार्क टाइम्स ने अपनी पुरानी टिप्पणी भूल सुधार के साथ व गोडार्ड से माफी मांगते हुए छापी थी और लिखा --- किसी भी नई परिकल्पना को ऐसे मजाक में उड़ा नहीं देना चाहिए l गंभीरतापूर्वक चिंतन करना चाहिए l कल्पनाओं ने ही तो विज्ञान का वर्तमान स्वरुप खड़ा किया है l
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