तानसेन  के  गुरु  हरिदास  महाराज  थे  l  उनकी  प्रसिद्धि  सुनकर  अकबर  ने  भी  उनसे  मिलने  की  और  उनका  संगीत  सुनने   की   इच्छा  प्रकट  की  l    तानसेन  मित्र  बनाकर   अकबर  को  ले  गए  l  गुरु  ने  कहा ---- " मैं  कन्हैया  के  सिवाय  किसी  के  लिए  नहीं  गाता  l  "  अकबर  ने  छिपकर  उनका  वंदना -भक्ति  गायन  सुना   और  फिर  समर्पित  भाव  से  उनके  चरणों  में  बैठ  गए   और  बोले  ---- " मैं    हिंदुस्तान  का  सम्राट  होने  के  नाते  ,  इस  वृन्दावन  के  लिए  और  यमुना  नदी  के  घाटों  के  लिए   क्या  कर  सकता  हूँ  ,  कृपया  आज्ञा  दें  l " 
अकबर के सिर पर अपना हाथ रखकर हरिदास महाराज ने वह दिव्य धाम दिखाया , जहाँ श्रीकृष्ण की नित्य लीलाएं होती हैं l भावसमाधि से निकाल कर कहा --- " तुम क्या निर्माण कराओगे ? क्या इस दिव्य धाम को तुम जैसा लौकिक व्यक्ति ठीक कराएगा l जाओ , सत्ता संभालो l " अकबर वापस आ गया , उसने जो देखा वह अद्भुत था l
अकबर के सिर पर अपना हाथ रखकर हरिदास महाराज ने वह दिव्य धाम दिखाया , जहाँ श्रीकृष्ण की नित्य लीलाएं होती हैं l भावसमाधि से निकाल कर कहा --- " तुम क्या निर्माण कराओगे ? क्या इस दिव्य धाम को तुम जैसा लौकिक व्यक्ति ठीक कराएगा l जाओ , सत्ता संभालो l " अकबर वापस आ गया , उसने जो देखा वह अद्भुत था l
 
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