23 June 2018

WISDOM ----- पाप और पुण्य

    कहते  हैं   विधाता  के  पास  प्रत्येक  मनुष्य  के  दो  घड़े  होते  हैं ---- एक  पाप  का  घड़ा  और  एक  पुण्य  का  घड़ा  l 
  कोई  व्यक्ति   पिछले  जन्मों  में  और  इस  जन्म  में   श्रेष्ठ  कर्म  करता  है  ,  इससे  उसका  पुण्य  का  घड़ा  भर  जाता  है    फिर  इस  पुण्य  का  भोग  करने  के  लिए  उसे  मान - सम्मान ,  पद - प्रतिष्ठा ,  धन - दौलत  सब  कुछ  मिलता  है   l  यह  सब  पा  कर  व्यक्ति  अहंकारी  हो  जाता  है ,  और  अधिक  सुख - सम्मान  पाने  की  लालसा  बढ़ती  जाती  है  l  इस  लालसा - लोभ  व  अहंकार  में  वह  ऐसा  कुछ  कर  गुजरता  है   जो  पाप  कर्म  हो  जाता  है  l  एक   ओर  पुण्य  के  फलस्वरूप  मिलने  वाला  सुख  भोगने  से  पुण्य  का  घड़ा  खाली  होता  जाता  है   तो  दूसरी  ओर  लालच  और  अहंकार  के  कारण  दूसरों  को  पीड़ित  करने ,  अत्याचार  व  अनीति  करने  से  पाप  का  घड़ा  भरने  लगता  है   l  जब  पाप  का  घड़ा  भर  जाता  है   तो  उसका  भोग   भोगने  के  लिए  पीड़ा ,  कष्ट - कठिनाइयों  का  समय  शुरू  हो  जाता  है  l   इस  तरह  उत्थान - पतन ,  सुख - दुःख  का  यह  चक्र  चलता  रहता  है  l 
  जो    जागरूक  होते  हैं ,  पाप  और  पुण्य  की  गहराई  को   समझते  हैं ,  वे  कभी  अहंकार  नहीं  करते   अपनी  शक्ति ,  अपनी  धन - संपदा  का  सदुपयोग  करते  हैं  ,  दुःखी   और  पीड़ित  व्यक्ति  की  पीड़ा  निवारण  के  कार्य  करते  हैं   l  ऐसा  करने  वाले  व्यक्तियों  का  उत्थान  के  बाद  पतन  नहीं  होता    क्योंकि     पुण्यों  के  फलस्वरूप  जो  सुख वैभव  मिला  ,  उसका  उपयोग  करने  से  जो   पुण्य   खर्च  हो  जाते  हैं  अथवा  पुण्य का  घड़ा  खाली  होता  है ,    वह  शक्ति  और  संपदा  के  सदुपयोग  से  पुन:  भरता  जाता  है  l 
      अब  ये  मनुष्य  का  विवेक  है ,  ईश्वर  ने  उसे  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है  ---- सफलता  की  ऊँचाइयों  पर   बने  रहना  पसंद  है  या  धड़ाम   से  नीचे  गिरना    पसंद  है   l       प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  होता   l 

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