19 March 2019

WISDOM ----- संन्यास का सही स्वरुप --- सेवा लेना नहीं सेवा करना है l

 बात  उन  दिनों  की  है  जब  स्वामी  विवेकानंद  घूम - घूम  कर  समूचे  देश  की  स्थिति  का  अवलोकन  कर  रहे  थे   l  उन  दिनों  वे  दक्षिण  भारत में  थे   l  एक  मठ  में  प्रवेश  कर  उन्होंने  महंत  से  पूछा  -- " क्या  मैं  यहाँ   एक  दो  दिन  रह  सकता  हूँ  l "  उनका  उद्देश्य  वहां  की  जीवन  प्रणाली  का  अध्ययन  करना  था  l   उन्होंने  देखा  कि  कुछ  लोग  उपनिषद  पढ़  रहे  हैं  l  स्वामी विवेकानंद  ने  उनसे  पूछा --- " आप  लोग  इस  ज्ञान  को  जीवन  में  उतारने  के  लिए  क्या  कर्म  करते  हैं  ? "
वे  लोग  बोले --- " कर्म  !  कर्म  से  हमारा  क्या  प्रयोजन  ? "
स्वामीजी ---- " शरीर  की  आवश्यकताओं  की  पूर्ति  आप  लोग  कैसे  करते  हैं  ? "
 साधु  ने  जवाब  दिया --- " अरे !  इतना  भी  नहीं  मालूम ,  यह  काम  गृहस्थों  का  है   l  वे  ही  हमारी  आवश्यकताओं  की  पूर्ति  करते  हैं   l "
स्वामीजी उस  स्थान  पर   पहुंचे  जो  साधुओं  के  निवास  के  लिए  था  -- संगमरमर  का  फर्श , विशाल  कमरे , गद्देदार  पलंग   l  यह  सब  देखकर   स्वामीजी  ने  साधु  से  पूछा --- " क्यों  महात्माजी  !  क्या  आपने  मजदूरों  की  बस्तियां  देखी   हैं  ?   क्या  उनके  घरों  से  भिक्षा  ली  है  ?  "
 साधु  बोला --- " वे  भला  क्या  देंगे ?  उनके  पास   खुद  नहीं  है  l "
स्वामीजी---- "  क्या  आपने  कभी  उनके  दुःख - दारिद्र्य  दूर  करने  के  सम्बन्ध  में  विचार  किया  ? '
साधु ---- " वे  अपने  पापों  का  दंड  भुगत  रहे  हैं  l "
   स्वामी  विवेकानंद  विचारमग्न  हो  गए  l  क्या  यही  संन्यास  है   ?  मूढों, , अकर्मण्य  और  विलासियों  का  जमावड़ा  हो  गया  है  l   स्वामीजी  का  मन   परेशान   हो  गया , वे  कन्या कुमारी  जा  पहुंचे  और  समुद्र  की  उत्ताल  तरंगों  को  बेध  कर  पाषाण  शिला  पर  पहुंचकर  ध्यान  में  डूब  गए  l
स्वामीजी  के  शब्दों  में  यह  ध्यान  भारत  की  आत्मा   का  था  l   एक  नया  भारत  l  संन्यास  का  नया  स्वरुप  समझाना  होगा  ,  सुशिक्षित , अनुशासित , कर्मठ  व्यक्तियों  का  दल   घर - घर , द्वार - द्वार  जाकर  लोगों  को  जीवन  बोध  कराये  l  कर्मठता  जीवन  का  ध्येय  बन  जाये  ,  मानव मात्र  जागरूक  हो  और  सामाजिक  कर्तव्य  निभाने  में  जुट  जाये   l    विराट  विश्व  की  आराधना  जो  कर  सके , ऐसे  समय दानी , लोकसेवी , कर्मठ  व्यक्ति  ही  सच्चे  संन्यासी  हैं   l  

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