3 June 2021

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- '  जब  तक  शक्ति-मंतों   की   भुजा  में  बल ,  वाणी  में  प्रभाव    और  विस्तार  पर  नियंत्रण  रहता  है  ,  सभी  उसे  नमन  करते  हैं  ,  उसके  अत्याचार  को  वीरता , अनीति  को  चातुर्य   और  शोषण  को  आवश्यकता   मानते  रहते  हैं   l   किन्तु  ज्योंही    उनकी  ये  विशेषताएं  समय  पाकर  क्षीण   हो  जाती  हैं   त्योंही  लोगों  के  मन   और  दृष्टिकोण  बदल  जाते  हैं   l   उसके  गुण   नीचे  पड़  जाते  हैं   और  सारे  दोष  उभर  आते  हैं    l  '  आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- ' वास्तव  में  अधिकार  पद  बड़ा  विडम्बनापूर्ण  होता  है   l   जब  तक  वह  सक्षम  और  समर्थ  है  ,  लोग  उसकी  झूठी  चाटुकारी   किया  करते  हैं   और  जब  वह  असहाय  और  विवश  होता  है    तो  तुरंत  आँखें  ही  नहीं  फेर  लेते   बल्कि    फिर  न  उठ  सके  इसके  लिए  दो  धक्के   और  दे  देते  हैं   l  '

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