28 September 2021

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ------ "  '  दक्ष '   को  देवाधिदेव  महादेव  ने   उसकी  कुमार्गगामिता  का  दंड   उसका  मानवीय  सिर  काटकर  ,  बकरे  का  सिर   लगाकर  दिया  था   l   दक्ष  की  चतुरता  का  वास्तविक  स्वरुप  यही  था   l   आज  भी  ' दक्षों  '  ने  ---- चतुरों  ने  यही  कर  रखा  है   l   ये  तथाकथित  चतुर  लोग  समाज  के    मूर्द्धन्य    बने  बैठे    तिकड़म  को  ही   अपना  आधार  बनाये   हुए  हैं   l   दूसरों  के  सहारे  वे  छल - बल  से   आगे  बढ़ते   हैं  ,  ऊँचा  उठते  हैं   l   तप  और  त्याग  का  नाम  भी  नहीं  है   l   ऐसे  मूर्द्धन्य   लोगों  का  बाहुल्य   व्यक्ति  और  समाज  की   आत्मा  को  कुचल - मसल  रहा  है   l   यह  स्थिति  महाकाल  को  असह्य  है   l   आज  का  मानवीय  चातुर्य  ,  जो  सुविधा  - साधनों  के   अहंकार  में   अपनी  वास्तविक  राह   छोड़  बैठा  है  ,  वैसी  ही  दुर्गति  का  अधिकारी  बनेगा  ,  जैसा  की  दक्ष  का  सारा  परिवार  बना  था   l  "                                                 आचार्य  श्री  लिखते  हैं  ---- " कभी - कभी  ऐसा  समय  आता  है   कि   छूत   की  बीमारी  की  तरह  अनाचार  भी  गति  पकड़  लेता  है   और  अपने  आप  अमर  बेल  की  तरह  बढ़ने  लगता  है    l   गलतियां  दोनों  ओर   से  होती  हैं  -- अनाचारी  अपनी  दुष्टता  से  बाज  नहीं  आता  है   और  सताए  जाने  वाले   कायरता , भीरुता   अपनाकर   टकराने  की  नीति   नहीं  अपनाते   l   तब  स्रष्टा  को  भी  क्रोध  आता  है     और  जो  मनुष्य  नहीं  कर  पाता ,  उसे  स्वयं  करने  के  लिए  तैयार  होता  है   l  "      मनुष्य  सन्मार्ग  पर  चले  अन्यथा  शिवजी   का  तृतीय  नेत्र  खुलने  और  भगवान  कृष्ण   के  हाथ  में  सुदर्शन चक्र  आने  में  देर  नहीं  लगती   l 

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