3 September 2021

WISDOM ------

     सौराष्ट्र   के  राजकवि  हेमचन्द्र  सूरि    का   सम्मान  स्वयं  नरेश    करते  थे  और  प्रजा  भी   उन्हें  हृदय  से  प्रेम  करती  थी   l   एक  बार  वे  एक  गांव  में  प्राकृतिक  सौंदर्य  का  आनंद  लेने  हेतु  निकले   l  गांववासियों  को  जैसे  ही  ज्ञात  हुआ  कि  कविराज  आ  रहे  हैं  ,  वे  सभी  कुछ  न  कुछ  लेकर   कविराज  के  दर्शनों  हेतु  उमड़  पड़े   l   इसी  क्रम  में  एक  ग्रामीण  ,  जो  स्वयं  फटेहाल  वस्त्रों  में  था  , उसने  एक  हस्तनिर्मित  परिधान   राजकवि  के  चरणों  में  समर्पित  किया   l   एक  नजर  उस  टाट  जैसे  मोठे  कपड़े   पर    तो  दूसरी  तरफ   अपने  वस्त्र - आभूषण   पर  नजर  डालते  हुए  राजकवि  की  आँखें  भर  आईं   l  राजकवि  मन  ही  मन  सोचने  लगे  --- " कितनी  घोर  विषमता  है  !  कहाँ  हम   कीमती  व   बहुमूल्य   परिधानों  से  सुसज्जित  हैं   और  कहाँ  यह  परिश्रमी  किसान  तन  ढकने  के  वस्त्रों  से  वंचित  है   l  सत्य  तो  यह  है  कि  हमारा  अस्तित्व   इसकी  श्रमशीलता  के  कारण  ही  है  ,  किन्तु  हम  इसे  ही  सुरक्षित  जीवन   प्रदान  करने  में  असमर्थ  हैं   l  "  ऐसा  विचार  करते  हुए  राजकवि  ने  वह  परिधान  अपने  माथे  से  लगाया   और  धारण  कर  लिया   l  जब  राजकवि  दरबार  में  पहुंचे   तो  उनके  वस्त्रों  पर  दृष्टि  जाते  ही   महाराज  बोले  ---- "कविवर  ! ऐसे  दरिद्र   वस्त्र  आपको  शोभा   नहीं  देते    हैं   ,  आपने  ऐसे  वस्त्र  क्यों  पहने  हैं   ? "  कविराज  बोले  ---- " महाराज  !  हमारे  राज्य  की   अधिकांश  प्रजा  ऐसे  ही  साधारण  वस्त्र  पहनती  है  ,  तो  फिर  मुझे   यह  बहुमूल्य  वस्त्र  पहनने  का  अधिकार  किसने  दिया   ?  मैंने  निश्चय  किया  है   कि   अब  मैं  ऐसे  ही  वस्त्र  पहनूंगा  l  "  कविराज  की  करुणापूर्ण  बातों   ने    महाराज   के  अंतर्मन   को  छू  लिया   और  उन्होंने  निश्चय  किया   कि   अब  वे   किसान , मजदूर ,  प्रजाजन  आदि  सबके  हितों  का  ध्यान  रखेंगे   और  उनकी  पीड़ा  निवारण  का  हर  संभव  प्रयत्न  करेंगे   l  

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