पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' ईश्वर का प्यार केवल सदाचारी व कर्तव्य परायणों के लिए सुरक्षित है l ' कहते हैं सनंदन आचार्य शंकर के प्रथम दीक्षित शिष्य थे l एक दिन की बात है सनंदन किसी काम से अलकनंदा नदी के उस पार पुल से होकर गए थे l तभी आचार्य शंकर ने सनंदन को बड़े ही करुण स्वर में पुकारना शुरू किया l गुरु की पुकार सुनकर सनंदन बेचैन हो गए , उन्होंने सोचा गुरु अवश्य किसी मुसीबत में होंगे , यदि मैंने पुल का रास्ता अपनाया तो पहुँचने में देर हो जाएगी l नदी का प्रवाह बड़ा प्रबल था l लेकिन उनके मन में गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा थी , अत: उन्होंने उफनती अलकनंदा में छलांग लगा दी l गुरु भक्ति देखकर अलकनंदा ने भी उनकी मदद की और सनंदन के प्रत्येक कदम के नीचे कमल के फूल खिला दिए l जिन पर पैर रखते हुए वे तुरंत ही आचार्य शंकर के पास पहुँच गए l अन्य सभी शिष्य इस अलौकिक घटना को देखकर आश्चर्य चकित रह गए l आचार्य शंकर ने कहा ---- " आज से सनंदन पद्मपाद के नाम से प्रसिद्ध होंगे l " गुरु कृपा ही भवसागर को पार करने का एकमात्र उपाय है l
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