9 October 2022

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---' जितनी  शक्ति  मनुष्य  के  भीतर  है  , उतनी  किसी  के  पास  नहीं  है   किन्तु  मनुष्य  भोग -विलास  में  जीवन  बिता  कर  इस  अमूल्य  संपत्ति  को  नष्ट  कर  रहा  है  l  '  एक  कथा  है ----- एक  तपस्वी  वन  में  रहकर  घोर  तप  कर  रहे  थे  l  यह  देख  इंद्र  घबराए   कि  इतना  कठोर  तप  करने  वाला  इन्द्रासन  का  हकदार  बन  सकता  है  l  इंद्र  ने  उनकी  तपस्या  भंग  करने  के  लिए  अप्सराएँ  भेजीं ,  डराने  के  लिए  राक्षस  भेजे  ,  पर  तपस्वी  ज्यों  के  त्यों   रहे  , वे  जरा  भी  डगमगाए  नहीं  l  अब   इंद्र  ने  दूसरी  चाल  चली  l  उन्होंने  एक  परी  को   बहुत  से  पकवान , मिष्ठान  लेकर  भेजा  l  तपस्वी  ने  पहले  तो  उपेक्षा  दिखाई  ,  लेकिन  फिर  उनकी  जीभ  चटोरी  हो  गई  l  वन  में  ऐसा  स्वादिष्ट  भोजन   उन्हें   पहली  बार  मिला   l  अब  वे  रोज  उस  परी  की  प्रतीक्षा  करने  लगे  l  एक  दिन  वन परी  अपने  घर  छप्पन  भोग  पकवान  खिलाने  का  निमंत्रण  देने  आई  l  तपस्वी  उसके  घर  पहुंचे  और   भोजन  कर  बहुत  प्रसन्न  हुए  l  परी  ने  कहा ---- ' आप  मेरे  घर  ही  निवास  करें  ,  इससे  भी  बढ़कर  भोजन  कराया  करुँगी  l "  तपस्वी  सहमत  हो  गए  l  रोज -रोज  पकवान  खाते  थे  l  अब  वे  परी  पर  मुग्ध  हो  गए  , उसके  साथ  गंधर्व  विवाह  करने  को  सहमत  हो  गए  l  तप  भ्रष्ट  हुआ  ,  देवराज  इंद्र  बहुत  प्रसन्न  हुए   और  बोले ---- " अन्य  रस  छोड़े  जा  सकते  हैं  ,  पर  स्वाद  बड़े -बड़ों  की  साधना  चट  कर  जाता  है  l "

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