द्रोपदी के पांच पुत्रों को सोते समय द्रोंणपुत्र अश्वत्थामा ने मार डाला । पांडवों के क्रोध का ठिकाना न रहा । वे उसे पकड़ कर लाये और द्रोपदी के सामने ही उसका सिर काटना चाहते थे ।
द्रोपदी का विवेक तब तक जाग्रत हो गया, बोली,--- " पुत्र के मरने का माता को कितना दुःख होता है, उतना ही दुःख तुम्हारे गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी को होगा । गुरु ऋण को, उस माता के ऋण को समझो और इसे छोड़ दो । " अश्वत्थामा को छोड़ दिया गया ।
द्रोपदी का विवेक तब तक जाग्रत हो गया, बोली,--- " पुत्र के मरने का माता को कितना दुःख होता है, उतना ही दुःख तुम्हारे गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी को होगा । गुरु ऋण को, उस माता के ऋण को समझो और इसे छोड़ दो । " अश्वत्थामा को छोड़ दिया गया ।
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