23 July 2018

स्वाधीनता के मंत्रदाता ------ लोकमान्य तिलक

  लोकमान्य  तिलक  ने   हिन्दुओं  में  उत्साह  और  जागृति  उत्पन्न  करने  के  लिए  ' गणपति  उत्सव '  और  'शिवाजी  जयंती '  दो  बड़े  त्यौहार   समारोहपूर्वक  संगठित  रूप  से  मनाने  का  प्रचलन  किया  l  इससे  अंग्रेज  अधिकारियों  में  भय  उत्पन्न  हो  गया  और  वे  इस  जागृति  को   दबाने  का  प्रयास  करने  लगे  l   इसी  समय  पूना  और  उसके  बाद  बम्बई  में  हिन्दू - मुस्लिम  दंगे  हो  गए   l  अंग्रेज  अधिकारियों  ने  इसका  दोष   लोकमान्य  तिलक  द्वारा  प्रचारित  ' शिवाजी  जयंती '  उत्सव  पर  डालना  चाहा  l 
  तिलकजी  ने  इस  आक्षेप  को  असत्य   बताते  हुए  अपने  पत्र  में  लिखा ----- " मैं  समझता  हूँ   इन  सब  झगड़ों  का   कारण  सरकार  ही  है   l  उसकी  पक्षपातपूर्ण  नीति  के  कारण  ही  दंगे  होते  हैं  l  देश  में  इस  समय  हिन्दू - मुस्लिम  द्वेष  के  बीज  बोये  जा  रहे  हैं   l  लार्ड  डफरिन  की  भेद  नीति  ही  सब  दंगों  का  मूल  कारण  है   l " 
  तिलकजी  ने   हिन्दुओं  को  कभी  भी   मुसलमानों  के  प्रति  शत्रु - भाव  रखने  की  प्रेरणा  नहीं  दी   l  उन्होंने  हिन्दुओं   को  समझाया  कि  यदि  कोई  अमानुषिक  करती  करने  पर   तुल  गया  है   तो  भी  तुम्हे  तत्काल  रक्तपात   और  अनुचित  उपायों  का  अवलंबन  नहीं  करना  चाहिए  ,  बदले  की  भावना  से  अनुचित  कार्य  नहीं  करना  चाहिए  l 
 लोकमान्य  भारतीय  स्वाधीनता  के  सच्चे  उपासक  थे   और  वे  किसी  भारतीय  को  धर्म  के  आधार  पर  शत्रु  नहीं  मानते  थे   l   यही  कारण  था  कि  '  अलीबंधु '  जैसे  प्रमुख  मुसलमान  नेताओं  ने  कहा   कि--- " राजनीति  में  तिलक    हमारे  गुरु  हैं   l  "  इसके  अतिरिक्त  ' आफताय '  के  संपादक   सैयद  तैदर  रजा  और  मौलाना  हसरत  मोहानी  जैसे  धार्मिक  मुसलमान  विद्वान्   उनके  अनुयायी  और  भक्त  थे   l 
  लोकमान्य  तिलक  ने  सरकारी  अधिकारियों  पर  दोषारोपण  करते  हुए   ' केसरी '  में  कई  लेख  लिखे  l  इस  पर  सरकार  ने  उन  पर  कार्यवाही  कर  18  महीने  की  कठोर  सजा  दी  l  जेल  में  उनके  साथ  बुरा  व्यवहार  किया  गया   l  जब  यह  समाचार  चारों  तरफ  फैला  तो  भारतीय  जनता  ही  नहीं  ,  इंग्लैंड  के  प्रसिद्ध  पुरुषों  ने  भी  इसकी  निंदा  की  l   मैक्समूलर, सर  विलियम  हंटर , दादाभाई  नौरोजी  आदि  प्रसिद्ध  विद्वानों  ने  सरकार  को  बताया  कि  तिलक  जैसे  महान  विद्वान्  के  साथ  ऐसा  व्यवहार  नहीं  किया जाना  चाहिए   l  इन  सबके  सम्मिलित  प्रयत्न  से  तिलकजी  को  एक  वर्ष  बाद  रिहा  कर  दिया  गया  l  जेल  से  छूटने  पर  जनता  ने  उनका  जैसा  भव्य  स्वागत  किया  उसकी  मिसाल  उस  समय  तक  देखने  में  नहीं  आई  थी   l  

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