21 February 2019

WISDOM ------ मनुष्य को यदि वास्तविक आत्मग्लानि हो जाये , तो वह आत्मसुधार हेतु बड़े से बड़ा कदम उठा सकता है--- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य -

   घटना  1939  की  है  -- जारक  खान --कबयिली  सरदार  का  होनहार  बेटा  था   जो  समाज  की  अव्यवस्था  तथा  दुष्प्रवृत्तियों  का  शिकार  होकर  दस्यु  बन  गया   था   l   एक  हजार  सुसंगठित  दस्यु  सेना  का  सेनापति  l  उसका  आतंक  इतना  अधिक  था  कि  ब्रिटिश  सरकार  ने  उसके  सिर  की  कीमत  25000 पौंड  रखी  थी  l   एक  बार   उसने  एक  व्यक्ति  को  कोड़ों  से  पीट - पीटकर  मार  डाला  l  अपने  हाथों  मार  डालने  के  पश्चात  उसे  पता  चला  कि  वह  एक  निर्दोष  संत  था  जो  सेवा  कार्य  में  लगा  था  l  इस  पवित्र , निर्दोष  व्यक्ति   की  हत्या  का  उसे  इतना  दुःख  हुआ  कि  वह  अड्डे  से  भाग  निकला  और  दो  वर्ष  तक   भिखारी  की  तरह   घूम   फिर कर    पिता  के  पास  आत्मसमर्पण  कर  दिया   l  कानून  की  निगाह  से  बचा  नहीं  उसे  फांसी  की  सजा  सुना  दी  गई  l
1942  में  विश्व  युद्ध  में  हिटलर  के  बढ़ते  हुए  प्रभाव  के  कारण  ब्रिटिश  सरकार  के  लिए एक - एक  सिपाही   मूल्यवान  था  l  तभी  जारक  ने  प्रस्ताव  रखा -- " मेरे  जैसे  व्यक्ति  के  लिए  मौत  कोई मायने  नहीं  रखती  l  मरना  तो  मुझे  है  ही  l  अच्छा  हो  कि  फांसी  के  फंदे  को  गन्दा  करने  के  स्थान  पर  मुझे  दुश्मन  की  गोलियों  का  सामना  करने  दिया  जाये  l "  उसकी  आवाज  में  सच्चाई  थी  , प्रस्ताव  स्वीकृत  हो  गया   l  जारक  को  विभिन्न  क्षेत्रों  में  जासूसी  तथा  गुरिल्ला  टुकड़ियों  में  रखा  गया  l  हर  जगह  उसकी  सूझ - बूझ  और  साहस की  धाक  जमती  रही  l    1943  में  उसे  बर्मा  की  गुरिल्ला टुकड़ी  में  भेज  दिया  गया  l   6  अप्रैल  को  वह  अपने  एक  गोरखा  साथी  के  साथ  जापानी  शत्रु  सेना  की  टोह  लेने  गया  l
                   लौटा  तो  देखा  कि  उसके  अड्डे  पर  जापानी  सेना   की    एक  टुकड़ी  ने  कब्ज़ा  कर  लिया   और  12  साथियों  में  से  9  को  वे  मार  चुके  थे  ,   तीन  बंधे  थे  l   दो  सैनिकों  को   मार    से  अधमरा  कर दिया  था  ,  उसके  बाद  नायक  का  नंबर  था  l  जारक   चाहता  तो  भाग  सकता  था   लेकिन  उसे  अपना  संकल्प  याद  था  कि  वह  कैदी की  घ्रणित  मौत  नहीं ,  शहीद  की  शानदार  मौत  मरेगा  l  जारक  ने  अपने  गोरखा  साथी  को  पास  की  छावनी  से  सहायता लाने  को  कहा  l   गोरखा  साथी  सुरक्षित  दूरी  तक  निकल  गया  ,  अब  उसने  पिस्तौल  निकल  ली  l  अब  तक  दो  साथी  भी  मर  चुके  थे  और  जापानी  सैनिक   उसके  नायक  की  और  बढ़  रहे  थे  l  जारक  ने  दो  जापानी  सैनिकों  को  निशाना  बना  दिया  l  अपनी  फुर्ती , सूझ - बूझ  से  जापानी  सैनिकों  को  उलझाये  रखा  l  जानबूझकर  उसने  जापानी   सैनिकों  को कठोर  व्यंग  किये   जिससे  जापानी कमांडर  अपना  संतुलन  खो  बैठा   और  जारक  पर  कोड़े  बरसाने  लगा  ,  भयंकर  अत्याचार  किया  l  इसके  पीछे  जारक  का  यही  उद्देश्य  था  कि छावनी  से  कुमुक  आ  जाये  जापानियों  को  खदेड़  दे  और  नायक  बच  जाये  l  उसके  प्राण  छटपटा  रहे  थे  लेकिन  प्रबल  संकल्प  से  मौत  भी   ठहर  गई  l  जारक  सफल  हुआ  l  छावनी  से  कुमुक  आ  गई  ,  सभी  जापानी  सैनिक  खदेड़  दिए  गए  l   नायक  के  बंधन  खोले  जाते  देख,   उसकी  आँखों  में  संतोष  था  l  अब  उसने  मृत्यु  को  आज्ञा  दे  दी  ,  प्राण - पखेरू  उड़  गए  l  उसका  प्रायश्चित  पूरा  हो  गया  l  पूर्ण  सैनिक  सम्मान  के  साथ  उसकी   अंत्येष्टि   की  गई   l   

No comments:

Post a Comment