5 April 2020

WISDOM ----

 श्रीमद्भगवद्गीता  में  भगवान   कहते  हैं ---- ' मैं  काल  हूँ l '
इसे  समझाते   हुए  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है --- जीवन  के  साथ  तीन  सत्य  अनिवार्य  रूप  से  जुड़े  हैं  ---- काल ,   कर्म   और  स्थान  l  प्रत्येक  व्यक्ति  निश्चित  स्थान  में  निश्चित  कर्म  करता  है  l  वह  अच्छा   करता  है  या  बुरा  करता  है  यह  उसके  स्वाभाव , उसकी  भावना  पर  निर्भर  है  l 
जो  कर्म  हमने  किये  उनका  परिपाक समय  के  गर्भ  में  होता  है  l   इनका  परिपाक  हो  जाने  पर  पुन: एक  निश्चित  स्थान  पर  काल  उनका  परिणाम  प्रस्तुत  करता  है   l 
व्यक्तिगत   जीवन  में  यदि  कर्म  अशुभ  होता  है   तो  काल  रोग , शोक , पीड़ा  व  पतन  बनकर  प्रकट  होता  है  l   यदि  सामूहिक  जीवन  में  अशुभ  कर्म  होता  है  तो  काल  प्राकृतिक  आपदाओं  ,  युद्ध  की  विभीषिकाओं  का  रूप  लेकर  आता  है  l   ऐसी  स्थिति  में  काल  बनता  है --- महामारी , भूकंप ,  बाढ़ , सूखा , अकाल   और  ऐसे  ही  अनेक  उपद्रव  बन  जाता  है   l
  यदि  कर्म  शुभ  हों   तो   काल   व्यक्तिगत  जीवन  में   सुख - समृद्धि , शांति - उन्नति  बनकर  आता  है  l   यही  स्थिति  सामूहिक  जीवन  में  हो   तो सुख - समृद्धि , शांति  व  उन्नति  अनेक  रूप  लेकर  प्रकट  होती  है  l
महाभारत  में  स्वयं  परमेश्वर  कुरुक्षेत्र  में  महायुद्ध  का  दंड  लेकर  प्रकट  हुए  हैं  l  भगवान   अर्जुन  से  कहते  हैं --- व्यक्ति  अथवा  समूह  को   कोई  परिस्थिति  या  घटनाक्रम  नहीं  मारता  l   उसे  मारता  है ,  उसका  कर्म   l   भीष्म  एवं   द्रोण   अपने  व्यक्तिगत  जीवन  में  भले  ही  अच्छे  हों  ,  पर  दुर्योधन  के  अनगिनत  दुष्कर्मों  के  साथ  उनकी  मौन  स्वीकृति  थी  l   इसी  मौन  स्वीकृति  ने  उसे  दंड  का  भागीदार  बना  दिया  l   यही  स्थिति  अन्यों  की  भी  है  l      
जीवन  में  शुभ  और  अशुभ  के  लिए  प्रत्यक्ष  में  जिम्मेदार  कोई  भी  हो  ,  पर  यथार्थ  में  उत्तरदायी  होते  हैं  व्यक्ति  के  कर्म   l   इस  कर्म  के  अनुसार  ही   काल  नियत  समय  व  नियत  स्थान   पर  परिस्थितियों  व  घटनाक्रम  का  सृजन  कर  देता  है  l 
आचार्य श्री  लिखते  हैं  हम  सभी  को  अपने  कर्मों  के  अनुसार  स्थान  मिला  है  ,  साथ  ही  हमें  नए  कर्मों  को  करने  की  स्वतंत्रता  है  l 
श्रीमदभगवद्गीता   में  भगवान   के  कहे  गए  ये  वचन  हमारी  चेतना  को  जाग्रत  करने  के  लिए  हैं  l   भीष्म  और  द्रोण   की  तरह  हम  अत्याचार  और  अन्याय  को   चुपचाप  मौन  रहकर  न  देखें  l  अपनी  विवेक शक्ति  को  जाग्रत  करें  , अत्याचारी अन्यायी  का  साथ  न  दें ,  अन्यथा  काल  के  सामूहिक  दंड  से  कोई  नहीं  बचा  सकेगा  l 

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