16 April 2022

WISDOM------

   श्री रामचरितमानस  में  गोस्वामी जी  कहते  है  ---- ' मैं  सच्चे  भाव  से  दुष्टों  को  प्रणाम  करता  हूँ  , जो  बिना  ही  प्रयोजन  , अपना  हित   करने  वाले  के  भी  प्रतिकूल  आचरण  करते  हैं  , जिनको  दूसरों  के  उजड़ने  में  हर्ष   और  बसने  में  विषाद   होता  है  l  गोस्वामी जी  कहते  हैं  संत  व्यक्ति  कमल  के  समान   होते  हैं  जिनका  दर्शन  और  स्पर्श  सुख  देता  है  लेकिन  असंत  व्यक्ति  जोंक  की  तरह  होते  हैं  , जोंक  शरीर  का  स्पर्श  पाते  ही  रक्त  चूसने  लगती  है   l  '   आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- 'इस  संसार  में   जो  वेषधारी  ठग  हैं , उन्हें  भी  साधु - संत  का  वेश  बनाए   देखकर  संसार  पूजता  है  ,  लेकिन  अंत  तक  उनका  कपट  नहीं  चलता  l  उदाहरण  के  लिए   कालनेमि  ने  ऋषि  का  वेश  बनाया   और  हनुमानजी  के  साथ  छल  किया ,  रावण  ने  साधु  का  वेश  बनाया  और  सीताजी  के  साथ  छल  किया   और  राहु  ने  देवता  का  रूप  बनाया  और  देवताओं  के  साथ  छल  किया  ,  लेकिन  इन  तीनों  को   इस  छल  का  भयंकर  दंड  भुगतना  पड़ा   l  '         कलियुग   में  लोगों  में  दुर्बुद्धि  है   कि   वे   लोगों  के  बाहरी  रूप , वेश -भूषा  को  देखकर  उसे  सम्मान  देते  हैं  ,  उसके  पीछे  जो  उनकी  असलियत  है  उसे   समझ  नहीं  पाते  l   सत्कर्म  करने  से , सन्मार्ग  पर  चलने  से  विवेक  जाग्रत  होता  है  l   विवेक  दृष्टि  जाग्रत  होने  पर  ही  हम  वो  समझ  सकते  हैं   जो  सामान्य  आँखों  से  नहीं  दिखाई  देता  l   रामचरितमानस   से  हमें  यही  शिक्षा  मिलती  है  कि   हम  गुणों  की ,  मन  और  विचारों  की  पवित्रता  का  सम्मान  करें  ,  जामवंत  जी  रीछ  शरीर धारी   होने  पर  भी  सम्मान  के  पात्र  हैं  ,  श्री हनुमानजी  वानर  रूप  में  भी  सारे  संसार  में  पूजित  हैं  l   

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