पुराण में एक रोचक कथा है ---- एक बार स्वर्ग के राजा इंद्र और मरुत देव में विवाद हुआ कि तपस्या श्रेष्ठ है या सेवा l मरुत देव का कहना था तपस्या श्रेष्ठ है और तपस्वियों में विश्वामित्र श्रेष्ठ हैं l वे तपस्वी होने के साथ त्यागी भी हैं l उन्होंने देवराज पर व्यंग करते हुए कहा --- ' आपको अपने सिंहासन का भय बना रहता है लेकिन विश्वामित्र त्यागी हैं , उन्हें इन्द्रासन का कोई लोभ नहीं है , उन्होंने बहुत सिद्धियाँ अर्जित की हैं और वे आत्म कल्याण के लिए तप कर रहे हैं l ' इंद्र ने कहा --- " सिद्धियाँ प्राप्त कर लेने के बाद यह आवश्यक नहीं कि व्यक्ति उनका उपयोग लोक कल्याण के लिए करे l शक्ति अर्जित होने पर अहंकार आ जाता है लेकिन सेवा में अहंकार का दोष नहीं होता इसलिए मैं सेवा को श्रेष्ठ मानता हूँ l महर्षि कण्व में सेवा भाव है , वे समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं इसलिए मैं महर्षि कण्व को विश्वामित्र से श्रेष्ठ मानता हूँ l ' इसी विवाद के समय महारानी शची आ गईं और यह तय हुआ कि क्यों न कण्व और विश्वामित्र की परीक्षा ली जाये l स्वर्गपुरी में बात फ़ैल गई कि देखें तपस्या से प्राप्त सिद्धि की विजय होती है या सेवा की ? अब देवराज किसी की परीक्षा लेने आ जाएँ तो क्या होगा ? इंद्र ने स्वर्ग की सबसे सुन्दर अप्सरा मेनका को ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने भेजा l फिर क्या था , रूप और सौन्दर्य के इंद्रजाल ने विश्वामित्र को आकाश से धरती पर ला दिया , उन्होंने अपना दंड , कमंडलु एक ओर रख दिया l सारी धरती पर कोलाहल मच गया कि विश्वामित्र का तप भंग हो गया l तप के साथ उनकी शांति , उनका यश , सिद्धि , वैभव सब नष्ट हो गया l कई वर्ष बीत गए l जब विश्वामित्र को होश आया तो पता चला कि उनसे अपराध हो गया , युगों की तपस्या व्यर्थ हो गई , क्रोध में उन्होंने मेनका को दंड देने का निश्चय किया लेकिन प्रात: काल होने तक मेनका अपनी पुत्री को आश्रम में छोड़कर इन्द्रलोक पहुँच चुकी थी l रोती -बिलखती , भूख से कलपती अपनी कन्या पर भी विश्वामित्र को दया नहीं आई कि उसे उठाकर दूध व जल की व्यवस्था करें , उन्हें तो बस अपने आत्म कल्याण की चिन्ता थी इसलिए बालिका को वहीँ बिलखता छोड़कर वे पुन: तप करने चले गए l दोपहर के समय ऋषि कण्व लकड़ियाँ काटकर लौट रहे थे , मार्ग में विश्वामित्र का आश्रम पड़ता था l बालिका के रोने का स्वर सुनकर उन्होंने सूने आश्रम में प्रवेश किया तो देखा अकेली बालिका दोनों हाथों के अंगूठे मुंह में चूसती हुई अपनी भूख मिटाने का प्रयत्न कर रही है l उसे देख स्थिति का अनुमान कर कण्व की आँखें छलक उठीं l उन्होंने बालिका को उठाया , चूमा , प्यार किया और गले लगाकर अपने आश्रम की ओर चल पड़े l अब इंद्र ने मरुत से पूछा --- " तात ! बोलो जिस व्यक्ति के ह्रदय में विश्वामित्र के प्रति जो अबोध बालिका को भूख से बिलखती छोड़ गए , कोई दुर्भाव नहीं है और अबोध बालिका की सेवा वे माता की तरह करने को तैयार हैं , तो बोलो कण्व श्रेष्ठ हैं या विश्वामित्र ? मरुत कुछ न बोल सके , उन्होंने अपना सिर झुका लिया l इंद्र ने कहा --- 'श्रेष्ठ तपस्वी तो वह है जो अपने लिए कुछ चाहे बिना समाज के शोषित ,उत्पीड़ित , दलित और असहाय जनों को निरंतर ऊपर उठाने के लिए परिश्रम किया करता है l इस द्रष्टि ने महर्षि कण्व श्रेष्ठ हैं , उनकी तुलना विश्वामित्र से नहीं कर सकते l
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