22 March 2013

JUDGEMENT

उपासना का अर्थ मात्र देवालय बना देना नहीं ,वैसा जीवन भी जीना भी होता है |
यमदूतों द्वारा दो व्यक्तियों को चित्रगुप्त के सम्मुख पेश किया गया | यमदूतों ने प्रथम व्यक्ति का परिचय कराते हुए कहा -"यह नगर सेठ है ,इनके यहां धन की कोई कमी नहीं | खूब धन कमाया है और समाज हित के लिये धर्मशाला ,मंदिर ,कुआँ ,विद्दालय आदि अनेक निर्माण कार्यों में उसे व्यय किया है | "अब दूसरे व्यक्ति की बारी थी | उसके लिये यमदूत ने कहा -"यह व्यक्ति बहुत गरीब है ,दो समय का भोजन जुटाना भी इसके लिये मुश्किल है | एक दिन जब ये भोजन कर रहा था ,एक भूखा कुत्ता इनके पास आया | इसने स्वयं भोजन न करके सारी रोटियां कुत्ते को दे दीं | स्वयं भूखे रहकर दूसरे की क्षुधा शांत की | अब बताइये इन दोनों के लिये क्या आज्ञा है ?"चित्रगुप्त जी ने बड़ी गंभीरता से कहा -"धनी व्यक्ति को नरक में और निर्धन व्यक्ति को स्वर्ग में भेजा जाये | "चित्रगुप्त के इस निर्णय को सुनकर दोनों आश्चर्य में पड़ गये | चित्रगुप्त ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा -"धनी व्यक्ति ने निर्धनों और असहायों का बुरी तरह शोषण किया है और उस धन से ऐश और आराम का जीवन व्यतीत किया है | निर्माण कार्यों के पीछे इनकी यह भावना थी कि लोग प्रशंसा करें ,यश गायें | गरीब ने पसीना बहाकर जो कमाई की ,उस रोटी को भी समय आने पर भूखे कुत्ते के लिये छोड़ दिया | यदि यह साधन -संपन्न होता तो न जाने कितने अभावग्रस्त लोगों की सहायता करता | पाप और पुण्य का संबंध मानवीय भावनाओं से है ,क्रियाओं से नहीं | अत:मेरे द्वारा दिया गया निर्णय ही अंतिम है | "

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