27 April 2013

SUKH AUR AANAND

'शरीर को जहां भौतिक सुविधाओं और साधनों से सुख मिलता है ,वहीं आत्मा को परमार्थ में सुख की अनुभूति होती है | जब तक परमार्थ द्वारा आत्मा को संतुष्ट न किया जायेगा ,उसकी मांग पूरी न की जायेगी ,तब तक सब सुख -सुविधाएं होते हुए भी मनुष्य को एक अभाव ,एक अतृप्ति व्यग्र करती रहेगी | शरीर अथवा मन को संतुष्ट कर लेना भर ही वास्तव में सुख नहीं है | वास्तविक सुख है -आत्मा को संतुष्ट करना ,उसे प्रसन्न करना | आत्मा को सुख का अनुभव ,आनंद की अनुभूति का एकमात्र साधन है --परमार्थ | परमार्थ का व्यवहारिक रूप है -सेवा | जो काम उच्च और उज्जवल उद्देश्यों की पूर्ति के लिये किये जाते हैं ,वे परमार्थ हैं | जिन कार्यों से आत्मा का विकास सधता हो ,वह परमार्थ है ,इसलिये सेवाभावी का जीवन ही सफल और सार्थक कहा जा सकता है | '
                   जिसकी अंतरात्मा में विश्व मानव की सेवा करने ,इस संसार को अधिक सुंदर -सुव्यवस्थित एवं सुखी बनाने की भावनाएं उठती रहती हैं और इस मार्ग में चलने की प्रबल प्रेरणा होती है ,वस्तुत:सच्चा परमार्थी और ईश्वर भक्त वही है | 

No comments:

Post a Comment